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तुलसी शब्द-कोश
लुगदी, भेजा ।
गूदा : सं०पु० (सं० गोर्द > प्रा० गोछ = गुछ) । मस्तिष्क की 'श्रोतों सानिसानि गूदा खात सतुआ से ।' कवि० ६.५०
गून : वि०पु० (सं० गुण्य > प्रा० गुण) । गुणनीय, गुना, गुणित । 'अंक रहें दस गून ।' दो० १०
गूल : सं०पु ं० (फ्रा० ) (१) जालसाजी ( मकर - फरेब ), छलना । (२) मूख ( अहमक ) ' गाल गुल गपत ।' विन० १३०२
गूलर : सं० स्त्री० । उदुम्बर वृक्ष । गूलर फल का वृक्ष जिसके फल के भीतर उड़ने वाले छोटे कीड़े (भुनगे ) रहते हैं । ' गूलर फल समान तव लंका ।' मा०
६ ३४.३
गृध्र : सं०पु० (सं०) गीध । विन० ४३.६
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गृहँ : घर में । 'बालक बृन्द बिहाइ गृहूँ ।" मा० २.८४
गृह : सं०पु० (सं० ) । घर । मा० १.३८.८
गृहका : (दु० काजु) । घरेलू काम । मा० २.११४.२
गृहककरी : सं० स्त्री० (सं० ) । घरेलू काम काज करने वाली दासी । मा० १.१०१ गृहपसु : सं०पु० (सं० गृहपशु) । घरेलू पालतू पशु – कुत्ता ( आदि) । 'लोलुप म गृह-प ज्यों जहँ तहँ सिर पदत्रान बजे ।' विन० ८६.३
गृहपाल : सं०पु० (सं० ) । गृहपति, परिवार का स्वामी । विन० १३६८ गृहादी : घर, वृक्ष इत्यादि मूर्त पदार्थ । 'बालक भ्रमहि न भ्रमहि गृहादी ।' मा०
७.७३.६
गृहासक्त : वि० (सं०) गृहस्थी में संलग्न + पत्नी में अनुरक्त = रागयुक्त | मा० ७.७३ क गृही : वि०
(सं० गृहिन्) । गृहस्थ, गृहस्वामी, गाहस्र्थ्यं नामक आश्रम में स्थित, दारधर्म का पालन करने वाला । मा० २.१७२
.: सं०० (सं० गेन्दुक > प्रा० अ) । तकिया, सोते में सिर के नीचे रखने वाला उपधान : ‘करत गगन को गेंडुआ सो सठ तुलसीदास ।' दो० ४६१
गे : (१) गए । 'प्रात क्रिया करि गे गुर पाहीं ।' मा० १.३३०.४ (२) भविष्य दर्थक विकारी शब्द- पुं० बहु० । 'आवहिंगे' इत्यादि ।
गेरु : सं०पु ं० (सं० गैर = गैरिक > प्रा० गेर = गेरिअ ) । पर्वत से निकलने वाली लाल खड़िया । मा० ३.१८.१
गेहूँ : घर में । 'नृषु गयउ कैकई गेहूँ ।' मा० २.२४
गेह : सं०पु० (सं० ) । घर । मा० १.७८
गेहा : गेह । मा० १.६२.५
गेहिनी : सं०पु० (सं० ) । गृहिणी, पत्नी, गृहस्वामिनी । विन० ५८.७