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________________ 248 तुलसी शब्द-कोश लुगदी, भेजा । गूदा : सं०पु० (सं० गोर्द > प्रा० गोछ = गुछ) । मस्तिष्क की 'श्रोतों सानिसानि गूदा खात सतुआ से ।' कवि० ६.५० गून : वि०पु० (सं० गुण्य > प्रा० गुण) । गुणनीय, गुना, गुणित । 'अंक रहें दस गून ।' दो० १० गूल : सं०पु ं० (फ्रा० ) (१) जालसाजी ( मकर - फरेब ), छलना । (२) मूख ( अहमक ) ' गाल गुल गपत ।' विन० १३०२ गूलर : सं० स्त्री० । उदुम्बर वृक्ष । गूलर फल का वृक्ष जिसके फल के भीतर उड़ने वाले छोटे कीड़े (भुनगे ) रहते हैं । ' गूलर फल समान तव लंका ।' मा० ६ ३४.३ गृध्र : सं०पु० (सं०) गीध । विन० ४३.६ I गृहँ : घर में । 'बालक बृन्द बिहाइ गृहूँ ।" मा० २.८४ गृह : सं०पु० (सं० ) । घर । मा० १.३८.८ गृहका : (दु० काजु) । घरेलू काम । मा० २.११४.२ गृहककरी : सं० स्त्री० (सं० ) । घरेलू काम काज करने वाली दासी । मा० १.१०१ गृहपसु : सं०पु० (सं० गृहपशु) । घरेलू पालतू पशु – कुत्ता ( आदि) । 'लोलुप म गृह-प ज्यों जहँ तहँ सिर पदत्रान बजे ।' विन० ८६.३ गृहपाल : सं०पु० (सं० ) । गृहपति, परिवार का स्वामी । विन० १३६८ गृहादी : घर, वृक्ष इत्यादि मूर्त पदार्थ । 'बालक भ्रमहि न भ्रमहि गृहादी ।' मा० ७.७३.६ गृहासक्त : वि० (सं०) गृहस्थी में संलग्न + पत्नी में अनुरक्त = रागयुक्त | मा० ७.७३ क गृही : वि० (सं० गृहिन्) । गृहस्थ, गृहस्वामी, गाहस्र्थ्यं नामक आश्रम में स्थित, दारधर्म का पालन करने वाला । मा० २.१७२ .: सं०० (सं० गेन्दुक > प्रा० अ) । तकिया, सोते में सिर के नीचे रखने वाला उपधान : ‘करत गगन को गेंडुआ सो सठ तुलसीदास ।' दो० ४६१ गे : (१) गए । 'प्रात क्रिया करि गे गुर पाहीं ।' मा० १.३३०.४ (२) भविष्य दर्थक विकारी शब्द- पुं० बहु० । 'आवहिंगे' इत्यादि । गेरु : सं०पु ं० (सं० गैर = गैरिक > प्रा० गेर = गेरिअ ) । पर्वत से निकलने वाली लाल खड़िया । मा० ३.१८.१ गेहूँ : घर में । 'नृषु गयउ कैकई गेहूँ ।' मा० २.२४ गेह : सं०पु० (सं० ) । घर । मा० १.७८ गेहा : गेह । मा० १.६२.५ गेहिनी : सं०पु० (सं० ) । गृहिणी, पत्नी, गृहस्वामिनी । विन० ५८.७
SR No.020839
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages564
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size32 MB
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