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तुलसी शब्द-कोश
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कवि० १.११ (२) गौरव शालिनी, महती। 'निगम आगम गुवि ।' विन०
१५५ गुलाम : सं०० (अरबी-गुलाम) । लड़का, सेवक, भृत्य, पाल्य । पालितदास ।
'महाराज को सुभाउ समुझत मनु मुदित गुलाम को।' कवि० ७.१४ (२) (दास-प्रथा में) क्रीत-पाल्य । ‘साहही को गोतु गोतु होतु है गुलाम
को।' कवि० ७.१०७ गुलामनि : गुलाम+संब० । गुलामों=पालित पुत्रों या पाल्य अनुचरों। 'काम
रिपु राम के गुलामनि को कामतरु।' कवि० ७.१६७ गुलामु : गुलाम+कए० । अनन्य पाल्य । 'हौं गुलाम राम को ।' कवि० ७.७० गुलाल : सं०पू० । लाल अबीर, रोली। गी० २.४७.१६ गुलुक : सं०० (सं० गुल्फ) । टखना, पैर की ग्रन्थियाँ जो चरण पीठ के ऊपर
दोनों ओर होती हैं। 'चरनपीठ उन्नत नतपालक, गूढ़ गुणक, जंघा कदली
जाति ।' गी० ७.१७.८४ गुसाईं : गोसाईं। स्वामी । विन० १४३.१ गुहें : गृहने । 'गाउँ जाति गृह नाउँ सुनाई ।' मा० २.१९३.८ गुह : सिंगरौर का निषादराज मा० २.१०२.१ गहाँ : गहा में । 'गिरिबर गुहां बैठ सो जाई ।' मा० ४.६.५ गुहा : सं०स्त्री० (सं०) । कन्दरा । मा० ४.१२ गहिबे : भूकृ०० (सं० गुफितव्य>प्रा० गुहिअव्वय) । गूंथने, पोहने । 'तेहि ___ अनुराग ताग गुहिबे कहँ मति मृगनयनि बुलावौं ।' गी० १.१८.२ गृहौं : आ०ए० (सं० गुफामि>प्रा० गृहमि> अ० गुहउँ) । गुह दूं, पोहूं। 'उबटौं
न्हाहु गृहौं चोटिया बलि ।' कृ० १३ गूगेहि : गूंगे को, मूक को, वाणीहीन व्यक्ति को । 'भा जनु गूंगेहि गिरा प्रसादू ।'
मा० २.३०७.४ गूढ़ : वि० (सं०) । गुप्त, रहस्यमय, दुर्बोध, सामान्यतः अज्ञेय । मा० १.३० ख गूढ उ : गुप्त भी । 'गूढ़उ तत्त्व न साधु दुरावहिं ।' मा० १.११०.२ गूढ़ा : गूढ़ । मा० १.४७.४ गूढाचि : सं० स्त्री० (सं० गूढाचिष ) । गुप्त ज्योति, अन्तर्यामी रूप से सर्वव्यापक
ब्रह्मज्योति । विन० ५३.६ गूढार्थबित : वि० (सं० गूढार्थविद्) । गुप्त पदार्थों का ज्ञाता=अन्तर्यामी=सर्वज्ञ ।
विन० ५४.५