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तुलसी शब्द-कोश
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(७) लाभ पुष्टि आदि। 'अद्भुत सलिल सुनत गनकारी।' मा० १.४३.२ (८) गणितीय गुणन-दुगुन आदि (8) दया, ज्ञान, वैराग्य, श्रद्धा आदि मानवीय उदात्त धर्म । 'ग्यान बिराग सकल गुन जाहीं।' मा० १.११६.६ (१०) वस्तु का अपरिहार्य धर्म । 'जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं।' मा. १.५.५ (११) रस्सी, धागा, डोरी । 'नाथ एव गुनु धनुष हमारे।' मा० १.२८२.७ (१२) ब्राह्मण के नव सात्त्विक धर्म-शम, दम, तप, शौच, क्षमा, सरलता, ज्ञान, विज्ञान, आस्तिकता। 'नव गुन परम पबित्र तुम्हारें।' मा० १.२८२.७ (१३) अच्छाई । 'बिधि प्रपंच गुन अवगुन साना ।' मा०१.६.४ (१४) चारित्रिक उदात्तता आदि । 'करन चहउँ रघुपति गुन गाहा।' मा० १.८.५ (१५) निष्क लङ कता, शुद्धता आदि । 'साक बनिक मनि गन गुन जैसे ।' मा० १.३.१२ (१६) काव्य गुण-श्लेष, प्रसाद, समता, समाधि, माधुर्य, ओजस्, सुकुमारता अर्थव्यक्ति, उदारता और कान्ति । 'कबित दोष गुन
बिबिध प्रकारा।' मा० १.६.१० /गुन, गुनइ : (सं० गुणति-गुण आमन्त्रणे>प्रा० गुणइ-सोच बिचार करना,
निर्णय खोजना, मन में तर्क-वितर्क करना या उधेड़ बुन करना, उलझन को मन में सुलझाने का प्रयास करना) आ.प्रए । सोच विचार करता है। 'अस मन
गुनइ राउ नहिं बोला ।' मा० २.४५.३ गुनउँ, ऊँ : आ.उए० (सं० गुणामि, प्रा० गुणमि>अ० गुणउँ) (१) सोच बिचार
करता हूँ। 'समुझउँ सुनउँ गनउँ नहिं भाबा ।' मा० ७.११०.५ (२) गुण-दोष पर विचार करता हूं। 'एहि बिधि अमिति जुगुति मन गुनऊँ ।' मा०
७११२.११ गुनउ : गुण भी । ‘गुनउ बहुत कलिजुग कर।' मा० ७.१०२ । गुनकारी : वि.पुं० (सं० गुणकारिन्) । लाभकारी (दे० गुन) मा० १.४३.२ गुनखानी : सभी गुणों का उत्पत्ति स्थान । गुणरूपी रत्नों का आकार। मा०
१.१४८.३ गुनगन : गुण समूह । मा० १.३५८.६ गुनगाथा : गुण कीर्तन । गुणों का आख्यान । मा० १.४२.७ गुनगान, ना : गुण कीर्तन । मा० १.१६६.१ गुनगायक : गुण कीर्तन करने वाला-वाले । मा० १.३००.५ गुनगाहक : वि० (सं० गुण ग्राहक) । दोषों की उपेक्षा कर केवल गुणों का लेने
वाला। गुनकहकताई : (दे० गाहकताई) गुण ग्राहिता । मा० ६.२४.५