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तुलसी शब्द-कोश
गुजा : सं०स्त्री० (सं०) । घुघची, रत्ती । 'गिरि समहोहिं कि कोटिक गुंजा।'
__ मा० २.२८.५ गुजारहीं : गुजहिं (सं० गुजा+रुवन्ति>प्रा० गुजारंति>अ० गुजारहिं)। ___ गुजा= गुञ्जन करते हैं । मा० ७२६१ छं० गुंड : सं०० (सं.)। मधुर ध्वनि, मधुर ध्वनि का संगीत । 'राम सुजस सब ___ गावहिं सुसुर सुसारंग गुड ।' गी० ७.१६.४ गुंडमलार : सं०० (सं० गुण्डमल्लार-गुण्ड =मधुर तान+मल्लार=राग
विशेष) । गोंडमलार गम का संगीत राग । गी० ७.१६.४ गुच्छ : सं० पु० (सं०) । स्तवक, गुच्छा। 'गुच्छ बीच बिच कुसुमकली के ।' मा०
१.२३३.२ गुड़ी : सं०स्त्री० (सं० गुडिका>प्रा० गुड्डिया>अ० गुड्डी। पतंग, पंग)। 'जनु
बाल गुड़ी उड़ावहीं ।' मा० ३.३० छं० गुढ़ि : पूकृ० (सं० घुटित्वा-घुट परिवर्तने>प्रा० घुडिअ>अ० घुडि)। उलट
पुलट कर, घोट-पीट कर, संवार कर । 'गढ़ि गढ़ि छोलि छाजि कुंद की सी
भाईं बातें ।' कवि० ७.६३ गुण : सं०० (सं०) । वस्तु का विशेष धर्म । मा० ५.श्लो० ३ दे० गन गुणग्राम : गुण समुह । मा० ३.११.१६ गुणनिधि : गुणों का सागर, सर्व गुण सम्पन्न, कल्याण गुण युक्त । मा० ६.श्लो० २ गुणगार : कल्याण गुणों के आगार । मा० ७.१०८.४ गुथए : भूकृ००ब० (सं० ग्रथिताः>प्रा० गुत्थविया) । गुम्फित, पोहे हुए । 'बचन
प्रीति गुथए हैं।' गी० ६.५.२ गुदरत : वकृ.पु० (अरबी- गुदर=वेवफा)। उपेक्षा या अवज्ञा करते, कृतघ्न __ होते । 'मिलि न जाइ नहिं गुदरत बनई ।' मा० २.२४०.५ गुदरि : पू० कृ० । कृतघ्नता करके । 'प्रभु सों गुदरि निबर्यो हौं ।' बिन० २६६.४ गुदारा : सं० । पहला खेवा (?) (सं० गोदारण =हन्न) लंगर । भर भिलुसार
गुदारा लागा।' मा० २.२०२.७ गुन : गुण । (१) रूप-रस आदि द्रव्य-धर्म । (२) माया (प्रकृति) के तीन गुण-सत्त्व, रजस् और तमस् । 'माया गुन गोपार ।' मा० १.१९२ (३) तीन संख्या (त्रिगुण के आधार पर) दो० ४५६ (४) वैष्णव मन में ब्रह्म के कल्याण गुणसत्य संकल्पता, सत्य कामता, क्षुधापिपाखाहीनता, अजरामरता, सर्वकर्तता, सर्वज्ञता, व्यापकता, अन्तर्यासिता आदि। 'नेति नेति कहि जासु गुन करुहिं निरंतर गान ।' मा० १.१२० (५) विशेषता । 'सुनि गुनभेदु समुझि हहिं साधू ।' मा० १.२१.३ (६) शुभ लक्षण । 'कहहु सुता के दोष गुन ।' मा० १.६६