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तुलसी शब्द-कोश
गगनगिरा : आकाशवाणी, देवी अदृश्य वाणी। मा० १.१८६ ।। गगनचर : आकाश में विचरण करने वाले जीव (पक्षी आदि) । 'एहि बिधि सकल
गगनचर खाई ।' मा० ५.३.३ गगनपथ : अन्तरिक्षमार्ग, वायुमार्ग । मा० ३.२८ गगनु : गगन+कए । सब-का-सब (एकीभूत) आकाश । ‘गगनु मगन मकु मेघहिं
मिलई ।' मा० २.२३२.१ गगनोपरि : (गगन+उपरि-स०) आकाश पर । मा० ६.७१.११ गच : सं०स्त्री० (फा०) । पक्की (जड़ाऊ) फर्स । 'नाना रंग चारु गच ढारों ।'
मा० ७.२७.३ गचकांच : कांच की बनी फर्स । 'ज्यों गचकांच बिलोकि स्येन जड़ छाँह आपने तन
की।' विन० ६०.३ गच्छन्ति : आ०प्रब० (सं०) । जाते हैं, पहुंचते हैं, प्राप्त करते हैं । विन० ५७.५० गज : सं०० (सं०) । हाथी । मा० १.११.१ गजगवनि, नी : गजगामिनि (सं० गजगमना) । पा०म० ११६ गजगामिनि : वि०स्त्री० (सं० गजगामिनी) । हाथी के समान मत्त चाल चलने
वाली । मा० १.३१७ गजगाह : (दे० गाह) हस्तिसेना अथवा हाथी का होदा । 'साजि - सनाह गजगाह
सउछाह दल ।' कवि० ६.३१ गजछाल : (दे० छाल) हाथी का चर्म । पा०म० छं० १२ गजबदन : गजानन । गणेश । मा० १.२३५.६ गजमनि, नी : गजमुकुता । मा० ७.६.३ गजमनियां : गजमनि+ब० । गजमुक्ताएँ । 'कंठुला कंठ मंज गजमनियां ।' गी०
१.३४.३ गजमुकता : (दे० मकुता) हाथी के कुम्भमण्डल के भीतर उत्पन्न होने वाली
मुक्ता । रा०न०४ गजमोति : गजमुकुता (दे० मोती) । गी० ७.२१.८ गजराज : (सं०) श्रेष्ठ हाथी । मा० १.२५६ गजराजा : गजराज । मा० ५.१६.७ गजराजु : गजराज+कए । मा० २.३६ गजानन : सं०० (सं.)। गज के मुख के समान मुख वाला=गणेश गजाननु : गजानन+कए । 'सुमिरि गजानन कीन्ह पयाना।' मा० १.३३६.८ गजारि, री : हाथी का शत्रु =सिंह । मा० ६.३०.३