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तुलसी शब्द-कोश
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गंजा : भूकृ.पुं० । नष्ट किया। 'तेहि समेत नृप दल मद गंजा।' मा० ५.२७.८ गंजेउ : भूकृ००कए० । नष्ट किया, मार गिराया। 'जन मृगराज किसोर महागज
गंजेउ ।' जा०म० १०४ गंड : सं०० (सं.)। कपोल । गी० ७.४.३ गंडकि : सं०स्त्री० (सं गण्डकी)। एक नदी जिसके काले पत्थर से। बने हुए
शालग्राम पूजे जाते हैं। गढ़ि गुढ़ि पाहन पूजिऐ गंडकि सिला सुभाउँ।' __ दो० ३६२ गंता : वि०पु० (सं० गन्त) । जाने वाला , गमनशील । 'भूमि पाताल जल गगन
गंता ।' विन० २५.८ गंध : सं०पु० (सं.)। (१) घ्राणग्राह्य गुण जो पृथ्वी का विशेष गुण है । 'बिनु महि
गंध कि पावइ कोई ।' मा० ७.६०.४ (२) सांख्यादि दर्शनों में पञ्च तन्मात्रों
या सूक्ष्मभूतों में अन्यतम । 'परम रस शब्द गंध अरु रूप ।' विन० २०३.६ गंधरब : गंधर्ब । गी० १.२.१५ गंधर्ब, बर्बा : सं०० (सं० गन्धर्ब)। संगीतज्ञ देवजाति विशेष । मा० १.७५;
गंभीर : वि० (सं०) (१) गहरा । निर्मल जल गंभीर ।' मा० ७.२८ (२) घना,
गहन । 'निसा घोर गंभीर बन ।' मा० १.१५६क (३) मन्द्र (स्वर)। 'गगन
गिरा गंभीर भइ ।' मा० १.१८६ (४) भरापूरा, परिपूर्ण (५) धैर्यशाली गंभीरतर : आरीशय गंभीर । विन० ५१.५ गंभीरा : गंभीर । (१) परिपूर्ण । 'नील कंज बारिद गंभीरा ।' मा० १.१६६.१
(२) धैर्यशाली । 'कहि न सकत कछु अति गंभीरा ।' मा० १.५३.२ गह : गई । 'धरि पंच गइ राति ।' मा० १.३५४ गइउँ : आ०-भूक०स्त्री०+उए । मैं गई । 'गइउँ न संग न प्रान पठाए ।' मा०.
२.१६६.५ गई : गई+ब० । 'सिधि सब..गईं जहाँ जनवास ।' मा० १.३०६ गई : भूक०स्त्री० (सं० गता>प्रा० गया=गई) । मा० १.७२.५ गईबहोर : वि.पु. । गई = खोई वस्तु को लौटा लाने वाला, शरणदाता ।
'गईबहोर गरीबने वाजू ।' मा० ९.१३.७ । गईबहोरि : सं०स्त्री० । 'गईबहोरि' होने का भावकर्म । खोई वस्तु को पुनः देने की
क्रिया । 'कहि पारथ सारथिहि सराहत गईबहोरि गरीबनेबाजी।' कृ० ६१ गएँ : जाने पर, जाने से । 'गएँ जान सबु कोइ ।' मा० १.४८क गए : भूकपु० (ब०)। मा० १.४८.१ गगन : सं०पु० (सं०) । आकाश, शून्य (अन्तरिक्ष) । मा० १.७.६