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तुलसी शब्दकोष
कृतकृत्य : वि० (सं.)। जो अपना कार्य सम्पन्न कर चुका हो, सफल, कृतार्थ ।
मा० ७.१२६ कृतग्य : वि० (सं० कृतज्ञ) । किये हुए को जानने वाला= उपकार मानने वाला।
'अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना।' मा० ६.६२.१ कृतयुवा : सं०० (सं०) । चतुर्युगी का प्रथम युग जो सत्त्व प्रधान होता है=
सत्त्वयुग= सतजुग । मा० ७.४० कृतांत : सं०० (सं०) । यमराज, मृत्यु; काल । मा० ३.२६.१२ कृतारथ : वि० (सं० कृतार्थ)। कृतकृत्य, सफल-मनोरथ । मा० २.२५७ कृतिन् : वि० (सं०) । कृती, कुशल, कृतार्थ । मा० ४ श्लोक २ कृतु : कृत+कए० । एकमात्र कर्म । 'सुमिरिए छाडि छल भलो कृतु है ।' विन०
२५४.२ कृत्या : सं०स्त्री० (सं०) । (१) कृत्य, कर्म (२) इन्द्रजाल (३) एक प्रकार की
देवी जिसे पशुबलि दी जाती है और जो जादू की देवी तथा पिशाची मानी गई
है । 'कारमन कूट कृत्यादि हंता ।' विन० २६.७ कृपन : वि० (सं० कृपण) (१) कन्जूस । 'सेवक सठ नप कृपन कुनारी।' मा०
४.७.६ (२) दरिद्र, दीन । 'जैसें परम कृपन कर सोना ।' मा० १.२५६.२ ।। कृपनाई : कृपणता से, दीनतावश । 'आगम लाग मोहि निज कृपनाईं।' मा०
१.१४६.४ कृपनाई : सं०स्त्री० (सं० कृपणता) । कन्जूजी। 'दानि कहाउब अरु कृपनाई।'
मा० २.३५.६ कृपनु : कृपन+कए० । एकमात्र कन्जू स । 'कृपन देइ पाइअ परो।' रा०प्र० ७ ४.३ कृपाँ : कृपा से । 'तुम्हारी कृपा सुलभ सोउ मोरे ।' मा० १.१४.११ कृपा : सं०स्त्री० (सं०-कृपू सामर्थ्य) । समर्थ द्वारा की हुई दया; अनुग्रह । मा०
कृपाकर : वि० (सं०) । (१) कृपा+आकर= दयानिधान (२) कृपा-कर == कृपा ___करने वाला=कृपालु । 'जानि कृपाकर किंकर मोहू ।' मा० १.८.३ कृपाना, ना : सं०० (स० कृपाण) । तलवार । मा० ५.१०.१ कृपापात्र : वि० (सं.)। कृपा का आलम्बन, कृपा पाने योग्य । मा० ७.७०.२ कृपामई : वि०स्त्री० (सं० कृपामयी) । कृपापूर्ण । वि० १७०.७ कृपामृत : कृपा रूपी अमत; अमृतवत् अमरत्व देने वाली कृपा । मा० १.१४५.६ कृपायतन : कृपा का आगार=परमकृपालु । मा० १.६१ कृपाल, ला : कृपालु । मा० १.१३.५; १६२ छं० कृपालु (लू) : वि० (सं०) । कृपायुक्त, दयालु । मा० १.२८.क