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तुलसी शब्द-कोश
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कूदे : भूकृ०पुब० (सं० कूदित>प्रा० कुद्दिय) । उछले । 'कूदे जुगल बिगत अम।' ____ मा० ६.४५ कूदें : कूदहिं । कूर्दै कपि कौतुकी।' कवि० ५.२६ कुद्यो : भूकृपु० कए० । उछल गया । 'कपीसु कूद्यो बातघात उदधि हलोरि के ।'
कवि० ५.२७ कूप : सं०पु० (सं.)। कूआ, गहरा गर्त । मा० २.२१ कूपक : कूप । 'संसार तम कूपक ।' विन० २०६.५ (तम कूपक=अन्धा कुआ) कूपा : कूप । मा० ३.१५.५ कूबर : संपु० (सं० कुव्र, कुब्ज) । पृष्ठ गुल्म विशेष । मा० २.१६३.४ कूबरी : कुबरी। (१) कृष्ण की प्रेयसी विशेष (२) मन्थरा । मा० २.३१.२ कबरे : वि०पू०ब० । कुब्ज लोग । 'काने खोटे कूबरे ।' मा० २.१४ कूर : वि० (सं० क्रूर) (१) छली, प्रपञ्ची। 'हँसिहहिं कूर कुटिल कुबिचारी।'
मा० १.८.१० (२) नृशंस, निर्दय, कर्कश, कठोर । मा० २.२६६.२ (३) अकर्मण्य, आलसी । 'सूरनि उछाहु, कू र कायर डरत हैं।' कवि० ६ ४६ (४) मूर्ख । 'लात के अघात सहै, जीमें कहै, कूर है।' कवि० ५.३ (५) सं०० (सं०) । उबला चावल आदि । 'तुलसी परोसरे त्यागि भाग कर कौर रे ।'
विन० ६६.५ (६) (सं० कूट>प्रा० फूड) । ढेर, ऊंची राशि, शिखर कुरुम : सं०० (सं० कूर्म) । कच्छप । मा० १.२६१ छं० कूरो : कूट+कए० (सं० कूट>प्रा० कूडो)। पर्वताकार ढेर । “भांग धतूरो बिभूति
को कूटो।' कवि० ७.१५५ कूल : सं०० (सं०) । तट, पार्श्वभाग । मा० १.३६ कूलद्रुम : नदी तट का वृक्ष जो सहजही धारा बढ़ने से किसी क्षण ढह सकता है ।
'तुम्ह सुग्रीव कूलद्रुम दोऊ ।' मा० ६.२३.३ कूला : कूला । मा० १.३६.१२ कृकलास : सं०० (सं०) । शरट=गिरगिट (राजा नृग विप्र-शाप से कृकलास
होकर गर्त में पड़े थे जिनका उद्धार श्रीकृष्ण ने किया)। विन० २३६.३ यह
तीर्थ 'कृकलास-तीर्थ नाम से द्वारका के पास है। कृकाटिका : संस्त्री. (सं.)। ग्रीवा-पश्चाद्-भाग । सुगढ़ पुष्ट उन्नत कृकाटिका,
कंबु कंठ सोभा मन भावति ।' गी० ७.१७.१० कृत : (१) भूकृ० (सं.)। किया हुआ, किये हुए। किया। 'सीता ते मम कृत
अपमाना।' मा० ५.१०.१ (२) वि० (सं० कृत्)। करने वाला । 'कल्पांतकृत।' विन० ५४.६