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तुलसी शब्द-कोश
कुरोटा : छोटे कुवंर । लघु वयस्क मनोहर कुमार । 'कोसलराय के कुरोटा।'
गी० १.६२.१ कुअंक : अशुभ चिन्ह, कुलक्षण की रेखाएँ । 'मेटत कठिन कुअंक भाल के ।' ___मा० १.३२.६ कुअवसर : अनुपयुक्त अवसर, प्रतिकूल परिस्थिति । ‘भयउ कुअवसर कठिन
संकोचू । मा० २.२१३.१ कुअवसरु : कुअवसर+कए । अद्वितीय प्रतिकूल समय । 'कुटिल कुबन्धु कुअवसर
ताकी।' मा० २.२२८.४ कुआर : वि.पु०-अविवाहित (कुमार) । 'अहइ फुआर मोर लघु भ्राता ।' मा.
३.१७.११ कुआरि : वि.स्त्री.-अविवाहिता (कुमारी) । 'कुअरि कुआरि रहउ का करऊँ।' __ मा० १.२५२.५ कुमारी : कुआरी। 'वरऊँ संभु न त रहउँ कुआरी।' मा० १.५१.५ कुकवि : कुत्सित कवि, काव्य कौशल तथा व्युत्पत्ति से रहित कवि, प्रतिभाहीन
अरसिक कवि । मा० १.१०.५ कुकरम : कुकरम+कए। एकमात्र (अद्वितीय) पापाचार; कलुषित कर्म ।
'आरत काह न करइ कुकरमू ।' मा० २.२०४.७ कुकाठ : अनुपयोगी काठ, अशुभ काष्ठ, अमङ्गलकारी लकड़ी। 'कलि कुकाठ कर
कीन्ह कुजलू । मा० २.२१२.४ कुकाठ : कुकाठ+कए । दूषित लकड़ी, गठीला अनुपयोगी काष्ठ । 'दत आठ को
पाठ कुकाठ ज्यों फाएँ ।' कवि० ७.१०४ कुकृत : (सुकृत का विलोम) कुकृत्य कलुषकर्म । विन० २६३.२ कुखेत : कुत्सित क्षेत्र, अशुभ भूभाग (जो स्वत: अपशकुन हो) । 'रटहिं कुभांति
कुखेत करारा।' मा० २.१५८.४ कुगहनि : कुत्सित पकड़, दुराग्रह+ऐसी दबोच जिससे स्वयं छूटना असंभव हो। _ 'मीचु बस नीच हठि कुगहनि गही है ।' गी० ५.२४.२ कुगांव : असभ्य निवासियों वाला गांव, निन्दित+उपेक्षित बस्ती। 'बसहिं कुदेस
कुवि कुबामा।' मा० २.२२३.७ घरी : कुअवसर, अनुपयुक्त घड़ी, ऐसी घड़ी जिसमें कोई प्रस्ताव उपयुक्त नहीं
होता । 'घरी कुघरी समुझि जिय देखू ।' मा० २ २६.८ कुघाइ : कुघाय । दो० ३२५ कुघाउ : कुघाय+कए । अति कष्टकर घाव जिसका उपचार असंभव हो, असाध्य
क्षत । 'निज तन मरम कुघाउ ।' विन. १००.६