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तुलसी शब्द-कोश
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कुधातु : कुघाड़ा । कड़ी चोट, विश्वासघात+दुःसाध्य आघात । 'बड़ कुघातु करि
पातकिनि कहेसि कोपगृहं जाहु ।' मा० २.२२ कुघाय : (दे० घाय) । मर्मान्तक आघात, असाध्य आघात, करारी चोट । 'असन
बिनु बन, बरम बिनु रन, बच्यो कठिन कुघाय।' गी० ७.३१.२ कुच : सं०पू० (सं०) मुकुलितप्राय स्तन । विन० १४.५ . कुचरचा : कुत्सित चर्चा, अपवाद, लोकनिन्दा । 'राम कुचरचा करहिं सब सीतहि
__ लाइ कलंका।' रा०प्र० ६.६.४ कुचाल : कुचालि । कृ० ६१ कुचालि, ली : सं०स्त्री० (सं० कुचाल>प्रा० कुचल्ली) (१) कुत्सित गति (नृत्य
की गतिविशेष को प्राकृत में 'चल्ली' कहते हैं) । लयहीन गति, असंगत चाल, छलना, प्रपञ्च । 'फिरि सुकंठ सोइ कीन्हि कुचाली।' मा० १.२६.६ (२) वि० । छली, प्रपञ्ची, धूर्त । 'बिधन मनावहिं देव कुचाली।' मा०
२.११.६ 'कुपथ कुतरक कुचालि कलि ।' मा० १.३२ कुचाह : अशुभ समाचार । 'कठिन कुचाह सुनाइहि कोई ।' मा० २.२२६.७ कुछ : कछु । कृ० ४५ कुज : सं०० (सं०) । कु=पृथ्वी का पुत्र= मङ्गल ग्रह । गी० १.२६.५ कुजंतु : क्षुद्र कीट-पतङ्ख, दूषित (अभक्ष्य) जीव । 'जनम भरि खाइ कुजंतु जियो
हौं।' गी० ३.१४.२ कुजंचू : सं०० (सं० कुयन्त्र)+कए। अटपटा यन्त्र, बढ़ई आदि का रद्दी-सा
उपकरण जिसमें फंसाकर वह लकड़ी ठीक से नहीं गढ़ पाता फिर भी अपटू
कारीगर उसी से काम करता है । मा० २.२१२.४ । कुजन : (१) कु=पृथ्वी भर के लोग । (२) कुत्सित जन, दुष्टजन। 'कुजनपाल
गुन बजित अकुल अनाथ ।' बर० ३५ कुजाचक : अनुचित प्रार्थना करने वाला, अदेय या अलभ्य वस्तु की मांग करने
वाला । विन० १७७.४ कुजाति, ती : (१) अधम जाति वाला। 'साधु असाधु सुजाति कुजाती।' मा०
१.६५ (२) अधम जाति । 'धिग तव जन्म कुजाति जड़ ।' मा० ६.३३क कुजुगति : दूषित तर्क (हेत्वाभास) । गी० २.७८.१ कुजोग : (दे० जोग) प्रतिकूल योग, मिश्रण, मिलावट आदि । 'ग्रह भेषज जल
पवन पट पाइ कुजोग सुजोग । होहिं कुबस्तु सुबस्तु जग । मा० १.७क कुजोर्गान : कुजोग+संब० । कुयोगों (ने), ग्रह आदि के पापयोगों ने । 'धेरि लियो
रोगनि कुजोगनि कुलोगनि ज्यों।' हनु० ३५ कुजोगी : दम्भी योगी, योगभ्रष्ट पति। मा० ६ ३४.१४