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________________ तुलसी शब्द-कोश 171 कुडलनि : कुंडल+संब० । कुण्डलों (ने) । 'कुंडलनि परम आभा लही ।' गी० ७.६.३ कुंडु : कुंड+कए । गर्त, वेदी का गड्ढा । 'जग्यकुंड' कवि० ५.७ कुंत : सं०० (सं.)। कन्नीदार बल्लम= ऐसा भाला जिसका फल चौड़ा होता है और लम्बा दुधारी के साथ पीछे की ओर को भी दो नोकें बनी रहती हैं। 'कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा।' मा० ५.१५.३ कुद : सं०० (सं.)। (१) श्वेत पुष्प विशेष। 'कुंद इंदु दर गौर सरीरा।' मा० १.१०६.६ (२) शाणयन्त्र जिस पर छुरे आदि की धार तेज की जाती है। (३) बढ़ई आदि का पहिएदार उपकरण विशेष जिस पर लकड़ी आदि को गढ़ने-छीलने के बाद चिकनाया जाता है । 'गढ़ि-गुढ़ि छोलि छालि कुंद की सी . भाई बातें । कवि० ७.६३ कुम : सं०० (सं.)। (१) कलश, घट। दे० कुंभज आदि । (२) हाथी का कपोल मण्डल । 'मत्तनाग तम कुंभ बिदारी।' मा० ६.१२.२ कुंभऊकरन : कुम्भकर्ण भी। 'कुंभऊकरन भाइ रक्षो पाइ आह सी।' कवि० ६.४३ कुंभकरन : (सं० कुम्भकर्ण) रावण का एक अनुजा । मा० ६.६२ कं मकरन्न : कुंभकरन । हनु० १६ कुमकरन्तु : कुंभकरन्न+कए। कवि० ६.५७ कंभकर्नु : "कुभकर्न'+कए० (सं० कुम्भकर्णः)। 'को कुभकर्नु कोटु ।' कवि० ६.२ कुंभज : सं०० (सं.)। अगस्त्य मुनि जिन्हें 'मत्रावरुणि' भी कहते हैं-मित्र और वरुण ने घड़े में शुक्रपात किया जिससे उनका जन्म हुआ। एक चुल्लू में समुद्र पी लेने की पौराणिक कथा भी है। मा० १.३२.६ मजात : कुंभज (सं०) । विन० ५३.८ कुभसंभव : (दे० संभव) =कुभज । विन० ४०.३ कुमीश : (सं०) कुभी हाथी+ईश । श्रेष्ठ हाथी, गजराज । विन० १५.४ कुर : सं०० (सं० कुमार>प्रा०कुमार>अ० कुर्वर) = कुमार । मा० १.२२६.१ कुअरन, न्ह, कुर्वरन, न्ह : कुर+संब० । कुमारों। तेज प्रताप बढ़त कुवँरन को।' गी० १.८०.५ कुरि, कुर्वरि : सं०स्त्री० (सं० कुमारी>प्रा० कुमरी>अ०कुर्वरि) = कुमारी। मा० १.३३८ कुकारु : कुऔर+कए । 'सांवर कुरु सखी सुठि लोना ।' मा०१.३२५.१
SR No.020839
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages564
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size32 MB
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