________________
170
तुलसी शब्द-कोश
कीसन्ह : कीस+संब० । बानरों (ने) । 'कीसन्ह घेरि पुनि रावनु लियो ।' मा० ६.१००.छं०
मिला, कुमिलाइ : (सं० कुम्लायति > प्रा० कुमिलाइ > कुम्हिलाइ - मुरझाना) । आ०-प्रए० । मुरझाता है । 'जानि पर सिय हियरें जब कुँमिलाइ ।'
बर० १२
कुँवर : कुअर । गो० १०४.३
कुँवर : कुअरि । गी० १०४.३
कु : अव्यय (सं०) । कुत्सित, कलुष, अनुचित, दुष्ट, नीच, प्रतिकूल असाध्य, घोर, विषम आदि अर्थों में यह पूर्वपद होकर आता है । कुपीर, कुआगि, कुरोग, कुसंग आदि बहुश: उदाहरण हैं जिनमें से ऐसे शब्द यहाँ संकलित होंगे जिनमें विशेष अर्थ जुड़ता है ।
कुंकुम : सं०पु० (सं० ) । केसर । मा० १.१६४.८
कुचित : भूकृ०वि (सं० ) । सिकुड़ा या सिमटा हुआ; ( केशों के सन्दर्भ में) घुंघराले । 'मेचक कुंचित केस ।' मा० १.२१६
कु ंजर : सं०पु ं० (सं०) ( १ ) हाथी । मा० १.२४३ (२) (समासान्त में) वि० । श्रेष्ठ । कपिकुंजर |
कुंजरारी : गजारि । सिंह । कवि० ६.४२
कुंजरो - नरो : संशयसूचक मुहावरा । महाभारत में 'अश्वत्थामा' नाम का हाथी मारा गया था परन्तु द्रोणाचार्य को धोखा देने के लिए सत्यवादी युधिष्ठिर से कहलाया गया— 'अश्वत्थामा मृत: ' जिससे अपने पुत्र 'अश्वत्थामा' के शोक में मग्न द्रोण को मारा जा सका - वे निर्णय न कर सके कि जो अश्वत्थामा मरा था वह 'कुञ्जर' था या नर । सत्य के रूप में मिथ्या प्रत्यय या सत्य और मिथ्या के अनिश्चय के अर्थ में इसका प्रयोग होता है । 'स्वारथ ओ परमारथ हू को नहि कुंजरो नरो ।' विन० २२६.४
कु ंठित : भूकृ०वि० (सं० - भुठि वेष्टने ) । वेष्टित, गुट्ठल । 'भा कुठारु कुंठित नृपघाती ।' मा० १.२८०.१
कं. ड : सं०पु० (सं०) । (१) बड़ा पात्र, कूड़ा। 'जन फूटहि दधि कुंड ।' मा० ६.४४ (२) गर्त । 'जग्यकुंड' कवि० ५.७ (३) जलाशय आदि । 'अमृत- कुंड महिलावौं ।' गी० ६.८.२
कुंडल : सं०पु० (सं० ) । कर्णाभरण, कानों का साला । 'कुंडल मकर मुकुट सिर भ्राजा ।' मा० १.१४७.५ (२) कोई मण्डलाकार रचना । ( ३ ) सर्प की डेली ।' 'कुंडल कंकन पहिरे ब्याला ।' मा० १.६२. २ ( यहाँ कर्णाभरण अर्थ भी है) ।