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तुलसी शब्द-कोश
किसु : कासु । किसका । 'कहहु बसेउ किसु गेह ।' मा० १.७८ किसोर, रा : सं० + वि०पु० (सं० किशोर) । (१) पन्द्रह वर्ष से कम वयस् का बालक । 'बय किसोर सुषमा सदन ।' मा० १.२२० (२) किशोरावस्था (सं० कैशोर) । 'कौमर सैसव अरु किसोर ।' विन० १३६.६ (३) 'पुत्र' अर्थ में भी प्रचलित है, पर वय का अर्थ सम्मिलित रहता है । 'कहँ गए नृपकिशोर मनु चिता । मा० १.२३२.७
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किसोरक : (सं० किशोरः = किशोरकः) किसोर = किसोरक + कए० । एक मनोहर किशोर । 'ससिहि चकोर किसोरकु जैसे ।' मा० १.२६३.७
किसोरी : किसोर + स्त्री० (सं० किशोरी ) । १५ वर्ष से कम वयस् की लड़की ।
(२) किशोरावस्था | 'बीती है बय किसोरी जोबन होनी ।' गी० २.२२.१ (३) किशोरावस्था को पुत्री । 'जय-जय गिरिबरराज किसोरी ।' मा० १.२३५.५
किनी : कहानी । 'कहि किहनी उपखान ।' दो० ५५४
किहें : किएँ । करने से । 'सकृत प्रनामु किहें अपनाए ।' मा० २.१६६.३ किहोसि : कीन्हेसि । उसने किया । 'किहेसि भँवर कर हरवा ।' बर० ३२
कीं : (दे० की) । (१) की में । 'रहा बालि कीं कांख ।' मा० ६.२४ (२) की से । छूटहि सकल राम कीं दाया ।' मा० ३.३६.३ ( ३ ) की... को । 'फिरि - फिरिचितव राम कीं ओरा ।' मा० ७.१६.२ (४ ) की 'आपु रहे मख की राखवारी मा० १.२१०.२
के लिए ।
की : (१) सम्बन्धार्थक परसर्ग स्त्री० । 'भव अंग भूति मसान की ।' मा० १.१०.छं० (२) कि । क्या । 'भरत की मातु को भी ऐसो चहियतु है ।' कवि० २.४ (३) कि । अथवा । ' की तुम्ह तीनि देव महँ कोऊ ।' मा० ४.१.१० (४) भू० कृ० स्त्री०=करी । ‘करनी न कछू की ।' कवि० ७.८८
कीच : सं०पु० । कीचड़ । 'अंतहुं कीच तहाँ जहँ पानी ।' मा० २.१८२.४ कोर्चाह : कीचड़ में, पड़क में । 'कीच हिं मिलइ नीच जल संगा ।' मा० १.७.६ कोचा : कीए । मा० १.१६४.८
कीजहु : आ० अभ्यर्थना मब० । तुम करना । 'कीजहु इहे बिचार निरंतर ।'
गी० २.११.४
कीजिअ : आ० कर्मवाच्य - प्रए० । कीजिए, किया जाय करिए । 'कीजिअ काजु रजाय पाई ।' मा० २.३८.२
कीजिए : कीजिअ ( सं क्रियते > प्रा० किज्जीअइ ) | 'आपन दास अंगद कीजिऐ ।' मा० ४.१०.छं २
कीजिय, ये : कीजअ ( पालन कीजिए ) । ' तजि अभिमान अनख अपनो हित कीजिय मुनिबर बानी ।' कृ० ४८