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तुलसी शब्द-कोश किरिच : सं०स्त्री० (सं० कृत्ति>प्रा० किच्चि) । खण्ड, टुकड़ा। 'कांच किरिच
बदले ते देहीं।' मा० ७.१२१.१२ किरिन : किरन । कवि० १.१३ किरीट : सं०० (सं.) । मुकुट । मा० १.११.२ किरीटन्हि : करीट+संब० । मुकुटों (में, पर)। 'पुनि नृप नयन किरीटन्हि परई ।'
मा० ७.१०६.१२ किलकत : वकृ ० । प्रसन्नतासूचक बचकानी ध्वनि करते हुए। 'भाजि चले
किलकत ।' मा० १.२०३ किलकन : भकृ० किलकने, किलकारी भरने । 'राम किलकन लागे।' गी० १.१३.१ किलकनि : सं. स्त्री० । किलकारी । मा० ७.७७.७ किलकनियाँ : किलकमि+ब० । किलकारियाँ । गी० १.३४.५ किलकहि, हीं : आ०प्रब० । किलकारी भरते हैं। 'देखि खेलौना किलकहीं।' गी..
. १.२८.८ किलकारी : सं० स्त्री (सं० किल-कारिका-परि०)। किलक ने की ध्वप्रि, शिशु
. हर्ष-नाद । कवि० ५.३ किलकि : पूकृ० । किलकारी भर कर, किलकिला शब्द करके । 'किलकि-किलक
हँसे ।' गी० १.३३.४ । किलकिला : सं०पु० (सं०) । हर्ष नाद विशेष, ध्वनि विशेष । 'सबद किलकिला
कपिन्ह सुनावा ।' मा० ५.२८.२ किलकिलाइ : पूकृ० । किललिा ध्वनि करके । 'किलकिलाइ गरजा अरु धावा।'
मा० ६.६५.३ किलकिलात : व पु । किलकिला शब्द करता-ते । गी० ५.२२.६ किलक : किलक हिं । 'किल के कल वाल बिनोद करें । कवि० १.३ किलबिषी : वि.पु० (सं० किल्विविन्) । पातकी । 'मन मलीन कलि कियबिषी।'
विन० १६१.६ किसब : सं०० (अरबी-कस्ब =पेशा) । व्यवसाय । 'जानत न कर कछु किसब
कबारु है।' कवि० ७.६७ किसबी : वि० (अरबी-कस्बी=पेशेवर) । व्यवसायी। किसबी किसान कुल
बनिक भिखारी भाट ।' कवि ७.६७ किसलय : सं०० (सं०) । पल्लव । मा० २.६६.२ किसलयमय : पल्लव-निर्मित । 'साथरी' 'कुस किसलयमय परम सुहाई।' मा०.
२.८६.८ किसान, ना : सं०पु० (सं० कृषाण>प्रा० किसान) । खेतिहर । मा० ४.१५८