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________________ तुलसी शब्द-कोश 165 किन : (१) अव्यय (सं० किन्न) । क्यों न । 'तो किन जाइ परीछा लेहू ।' मा० १.५२.१ (२) चाहे क्यों न, भले ही । 'मोहि बड़ मूढ़ कहै किन कोऊ ।' मा० १.१५१.५ (३) सं०० (सं० किण) । घट्ठा, घिसने या छिदने आदि से बना चमड़ी पर धब्बा । 'बन फिरत कंटक किन लहे।' मा० ७.१३.छं० ४ ।। किमपि : अव्यय (सं.)। कुछ भी। 'हरि तजि किमणि प्रयोजन नाहीं।' मा० १.१६२.१ किमि : अव्यय (सं० किम् >आ० किम)। कैसे, किस प्रकार । 'जौं नप तनय न ब्रह्म किमि ।' मा० १.१०८ किमिकै : क्यों कर । 'इन्हें किमिक बनबासु दियो हैं।' कवि० २.२० किय : भू० कृ० (सं० कृत>प्रा० किय) । किया। · सती हृदयँ अनुमान किय।' ____ मा० १.५७ क कियउँ : आ-भू००+उए। मैंने किया-की। 'सब कियउँ ढिठाई ।' मा० २.२४८.८ कियउ : किय+कए (अ०) । किया। 'कियउ निषादनाथु अगुअईं।' मा० २.२०३.१ कियत : वि०० (सं० कियत्) । कितना। 'सुख सो समुझ कियत ।' विन० - १३२.१ कियहु : आ०- भूकृ०+मब० । तुमते किया । 'कबहुं न किबहु सवतिआ रेसू ।' मा० २.४०.७ किया : किय । मा० १.६८.छं० कियो : कियउ । 'सुतन्ह समेत गवनु कियो भूषा ।' भा० १.३२८.२ किरणकेतु, (तू) : सं०पु० (सं०) । सूर्य । ‘शत्रु तम तुहिनहर किरणकेतू।' विना ४०.१ किरणमालिका : किरण समूह । विन० १६.१ किरणमाली : करमाली सूर्य । विन० २६.१ . किरन : सं० (सं० किरण) । मा० १.१६८.७ किरात : सं०० (सं० किंर पर्यन्त भूमिमतन्ति सततं गच्छन्तीति किराताः) । पर्वत-प्रदेशों में घूमने वाली जंगली जाति । मा० २.६०.१ किरातन्ह : किरात+संब० । किरातों (ने) । 'यह सुधि कोल किरातन्ह पाई।' मा० २.१३५.१ किरातिनि : किराती । मा० २.२६ किराती : किराती+स्त्री० (सं.)। मा० २.१३.४ किरातो : किरात भी। 'महिमा उलटे नाम की मुनि कियो किरातो।' विन.. १५१.७
SR No.020839
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages564
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size32 MB
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