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तुलसी शब्द-कोश
कास : सं०पु० (सं० काश ) । एक प्रकार की ऊँची घास । मा० ४.१६.२ कासी : काशी में । 'कासीं भरत परम पद लहहीं ।' मा० १.४६.४ कासी : काशी । मा० १.६.८
कासीनाथ : शिव । कवि० ७.१६५
कासीपति : शिव । विन० १३.६
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कासीस : (सं० काशीश ) । शिव । विन० ६.५
कासु : सर्वनाम (सं० कस्य > प्रा० कस्स > अ० कासु) । किसका-की- के । 'कहि होइ भल कासु भलाई ।' मा० २.२६७.७
काह : प्रश्नार्थक (नपुंसक ) सर्वनाम । क्या । 'कानन काह राम कर काजू ।' मा०
२.५०.२
काहली : वि० (अरबी – काहिल = सुस्त ;
काहली = सुस्ती ) । काहिल, सुस्त, आलसी, निकम्मा । ‘मो से दीन दूबरे कपूत कूर काहली ।' कवि० ७.२३ काहा : काह | 'जाइ उतस अब देहउँ काहा ।' मा० १.५४.२
काहि : (१) किसको, किससे । 'काहि कहै केहि दूषनु देई ।' मा० २.२७३.१ काहू करि गर्ने, मित्र गर्ने नहि काहि ।'
(२) काहू । किसी को । ' सत्रु न वैरा० १३
काहीं : किस से । 'राजु तजा सो दूषन काहीं ।' मा० १.११०.६
काही : काहि । मा० १.२००.५
काहु, हूं: कोई भी, किसी ने भी । 'दच्छत्रासू काहुं न सनमानी ।' मा० १.६३.१
'सो फलु तुरत लहब सब काहूं ।' मा० १.६४.२
काहु, हू : काहुं । किसी को आदि । 'सुखद सब काहु ।' मा० १.३२७ 'लोकहुँ वेद बिदित सब काहू ।' मा० १.७.८
काहुक : किसी का | 'अनभल काहुक कीन्ह ।' मा० २.२०
काहुन : किन्हीं का भी । 'लंकदाहु देखें न उछाहु रह्यो काहुन को ।' कवि० ६.१ काहि : किसी को, किसी के प्रति । 'सनमुख बिमुख न काहुहि काऊ ।' मा० २.२६७.८
काहे : सर्वनाम (सं० कस्मात् > प्रा० काहे ) । किस लिए, किस कारण | 'काहे करसि निदानु ।' मा० २.३६
कि : ( १ ) प्रश्नार्थक अव्य (सं० किम् > प्रा० कि) । क्या । 'सीय कि पिय सँगु परिहरिहि ।' मा० २.४६ ( २ ) या अथवा | 'देहु किलेहु अजसु ।' मा० २.३३.६ (३) की ( सम्बन्धार्थक परसर्ग - स्त्री ० ) । ' देखहु प्रीति कि रीति भलि ।' मा० १.५७ ख (४) किमि । कैसे । 'सोपुरु बरनि कि जाइ ।' मा० १.६४