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तुलसी शब्द-कोश
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कहैं : कहहिं । (१) वे कहें, कहते हैं । 'ऊधो हैं बड़े, कहैं सोइ कीजै ।' कृ० ४६
(२) हम कहें, कहते-ती-हैं । 'कोटि जतन करि सपथ कहैं हम।' कृ०६ कहै : (१) कहइ। कहे, कह सकता है, (कहता है) । पाँवरन्हि की को कहै।'
मा० १.८५.छं० (२) भकृ० (सं० कथयितु >प्रा०कहिंउ)। कहने । 'कथा
पुरातन कहै सो लागा।' मा० १.१६३.४ कहैगो : आ०-भ०पु०-प्रए । कहेगा। अपने-अपने को तो कहैगो घटाइ को।'
__ कवि० ७.२२ कहैया : वि० कहने वाला। कवि० १.१६ कहैहौं : आ० भ० उए। कहलाऊंगा। 'यह छरमार ताहि तुलसी जग जाको दास __ कहैहौं ।' विन० १०४.४ कहो : कह्यो । कवि० ७.६१ कहौं : कहउँ । कहूं। 'कहौं कहावौं का अब स्वामी ।' मा० २.२६७.१ (२) कह
सकता-ती हूं। 'स्याम गौर किमि कहौं बखानी ।' मा० १.२२६.२ (३) कहता
ती हूं। 'गोरस हानि सहौं, न भहौं कछु ।' कृ० ३ कहौंगो : आ०भ.पु.उए० । कहूंगा। 'बहोरि न खोरि लगै, सो कहौंगो।'
कवि० ७.१४ कहौ : कहहु । 'सकल कहो समुझाइ ।' मा० ३.१४ कहोगी : आ०भ०स्त्री०मए । तुम कहोगी। गी० १.७२.३ कहो : (१) कहेउ । कहा । 'कहो है पछोरन छूछो।' कृ० ४३ 'मुख कोटिहू न
पर कह्यो ।' मा० १.६६ छं० (२) कहा हुआ तथ्य । 'कह्यो मेरो मानि ।
कृ० १७ (३) कहेहु । तुमने कहा । 'आक दुहन तुम कह्यो।' कृ० ५१ ।। कांकर : सं०पु० (सं० कर्कर=कठोर, कर्कर= काँटा>प्रा० कक्कर, कक्कड।
सं० कङ करत=कवच>प्रा० कंकड़ । सं० कक्करत.>प्रा० ककङ्खड-कठोर)।
एक प्रकार का प्रस्तर तुल्य कठोर भूमिज खण्ड विशेष, कंकड़। मा० २.६२.५ कांकरी : कांकर+स्त्री०ब० । कंकड़ियाँ। 'कुस कंटक काँकरी कुराई।' मा०
२.३११.५ कोकिनी : काकिनी । कौड़ी। विन० १४३.५ कांख : सं०स्त्री० (सं० कक्ष, कक्षा>प्रा० कक्ख, कक्खा) । बगल, भुजमूल का
नतोदर भाग । मा० ६.२४ कांच : सं०० (सं० काच>प्रा० कच्च) । शीशा, पारदर्शी धातु विशेष । मा० . ७.१२१.१२ कामचनि : श्रेष्ठ काँच (कांच को काचमणि भी कहते हैं) । गी० २.२.३ कांचहि : कांच को। कंचन कांचहि सम गर्न ।' वैरा० २७