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तुलसी शब्द-कोश
कहीं : (१) भूक स्त्री०बहु० । 'कहीं कथा उपदेस बिसेषी।' मा० ४.२६.११
(२) अव्यय । किसी स्थान पर । 'परै न कल कहीं।' कवि० ७.६८ कही : भूक०स्त्री० । वणित की। तब हनुमंत कही सब राम कथा।' मा० ५.६ कहीजै : आ०-कर्मवाच्य-प्रए० (सं० कथ्यते>प्रा० कहिज्जइ) । कहा जाए।
"होहिं त क्यों न कहीजें ।' गी० ३.१५.४ कहुं : अव्यय (१) कहीं (कहाँ+हुं) । 'सोभा असि कहुं सुनि अति नाहीं।' मा०
१.२२०.६ (२) को, के लिए, के प्रति (=कह) । ‘राज देन कहुं सुभ दिन
साधा।' मा० २.५४.७ कह : आo-आज्ञा-मए० (सं० कथय>प्रा० कहः>अ० कहु) । तू कह । 'कहु कारनु
निज हरष कर ।' मा० १.२२८ कहूं : कहुं। कहीं पर । 'तुलसी कहूं न राम से साहिब सील निधान ।' मा०
१.२६क कहें : (१) कहने से । 'कहें कथा तव परम अकाजा ।' मा० १.१६६.१ (२) कहने
में । 'जौं नहिं लगिहहु कहें हमारे ।' मा० २.५०.५ कहे : (१) भूकृ.पु० (बहु०) (सं० कथित>प्रा० कहिय) । वणित किये । 'जहँ
लमि कहे पुरान श्रुति ।' मा० १.१५५ (२) कहें। कहने से, पर । 'जौं न
चलब हम कहे तुम्हारें ।' मा० १.१६६.७ कहे, ॐ : आ० भूकृ००+उए । मैंने कहा-कहे। 'अवसर पाइ बचन एक
' कहेऊँ ।' मा० १.१८५.४ कहेउ, ऊ : भूकृ.पु०कए० (सं० कथितम् >प्रा० कहिअं>अ० कहिउ=कहियउ)। __कहा । 'कहेउ, पुत्रवर मागु ।' मा० १.१७७ कोन्हि : आ० भूकृपु+प्रब। उन्होंने कहा-कहे। 'देन कहेन्हि मोहि दुइ
बरदाना ।' मा० २.४०.७ कहेसि : (१) आ०-भूकृ००+प्रए । उसने कहा । 'पातकिनि कहेसि कोफ्गृहें
जाहु ।' मा० २.२२ (२) उसने कहे । 'कहेसि अमित आचरज बखानी।' __मा० १.१६३.६ कहेसु : आ०भ०+आज्ञा–मए । तू कहना। 'कहेसु जानि जियें सयन बुझाई।'
मा० ४.१.४ कहेहं, हूँ : कहने से भी, कहने पर भी। ‘मातु कहेहुं बहुरहिं रघुराई । मा०
२.२५३.४ कहेहु, हू : आ० (१) भूकृ००+मब० । तुमने कहा । 'कहेह नीक मोरेहुं मन ___ भावा ।' मा० १.६२.१ (२) भ०+आज्ञा+मब । 'तुम कहना। कहेहु मोरि
सिख अवसरु पाई।' मा० २.८२.३