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तुलसी शब्द-कोश
कहा : (दे० कहा तथा धौं) । क्या भला, कैसे भला, क्यों कर । 'अबहीं ते सिखे कहाध चरित ललित सुत तेरे ।' कृ० ३
कहानी : सं०स्त्री० (सं० कथानिका > प्रा० कहाणिआ > अ० कहानी ) । (१) आख्यान । 'कहहिं पुरातल कथा कहानी ।' मा० २.१४९.२ ( २ ) वार्तालाप | 'ममता रत सन ग्यान कहानी ।' मा० ५.५०.३ ( ३ ) सप्रसंग वृत्तान्त | 'सुन राम बनबास कहानी ।' मा० २.२२४.८
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कहायहु : आ० – भू० कृ०पु० + म०ब० । तुम कहलाये । 'निज मुख तापस दू कहायहु ।' मा० ६.२१.६
कहाये : कहाए ।
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कहायो : भू० कृ०पु० ए० (सं० कथापित > प्रा० कहाविओ > अ० कहाविउ = कहावियउ) । कहलाया, कहा गया । 'नाम तुलसी पै भोड़ो तें कहायो दासु
।
कवि० ७.१३
कहार : सं०पु० (सं० कहार ? > प्रा० कहार, काहार - 'काहारो जलादिवाही कर्मकरः) । जल आदि ढोने वाली किंकर जाति विशेष । ( २ ) पालकी ढोने बाला । 'बिषम कहार मार मद माते ।' विन० १८६.३
कारन्ह : कहार + सं०ब० । कहारों (ने) । ' भरि भरि भार कहारम्ह आने ।'
मा० २.१९३.३
कहारा : कहार । मा० १.३००.७
/ कहाव, कहावइ : (सं० कथापयति > प्रा० कहावइ - कहलाना, कहा जाना, कहने को प्रेरित करना, ख्यात होना, नाम पाना) आ०प्र० । कहलाता है । कहाव : आ०उए । कहलाता हूं । 'कबि न होउँ नहि चतुर कहावउँ ।' मा०
१.१२.६
कहावत :- वक०पु० (सं० कक्षापयत् > प्रा० कहावंत ) | कहलाता । 'लागेउ तोहि पिसाच जिमि कानु कहावत मोरा । मा० २.३५
कहावती : क्रियाति ० स्त्री०ए० । कहलाती । यदि तो कही जाती । 'घरही सती कहावती, जरती नाह वियोग ।' दो० २५४
कहावहि: आप्रब० (सं० कथापयन्ति > प्रा० कहावंति > अ० कहावहि ) । कहलाते हैं, कहे जाते हैं । 'ते नहिं सूर कहावहिं ।' मा० ६.२६
कहावा ( १ ) कहावइ । कहलाता है, कहा जाता है । 'जौं प्रभु दीन दयाल कहावा ।" मा० १.५६.६ (२) भकृ०पु० | कहलाया, कथन कराया । 'प्रेरि सतिहि जोहि झूठ कहावा । मा० १.५६.५
कहावौं : कहावउँ । कहलाऊँ, कहा जाऊँ, ख्याति पाऊँ । 'कहौं कहावों का अब स्वामी ।' मा० २.२६७.१