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तुलसी शब्द-कोश
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'कहरत : कहरत । कहरि : पू० कृ० । कराह कर, व्यथा की ध्वनि निकाल कर, आर्त ध्वनि करके ।
'ठहर-ठहर परे कहरि-कहरि उठे।' कवि० ६.४२ कहरी : वि० (अरबी-कहर=जबर्दस्ती करना)। बलात्कारी, संकटकारी,
आकङ क ढाने वाला । 'गढ़ दुर्गम ढाहिबे को कहरी है।' कवि० ६.२६ कहरु : सं०पु० कए० (अरबी-कहर =बलात्कार) । आतङ क । 'डरत हौं देखि
कलिकाल को कहरु ।' विन० २५०.४ कहसि, सी : आ०मए० (सं० कथयसि>प्रा० कहसि) । तू कहता-ती-है (तू कहे) ।
'छोटे बदन बात बड़ि कहसी।' मा० ६.३१.७ कहहि, हीं : आ० (१) प्रब० (सं० कथयन्ति>प्रा० कहंति>अ. कहहिं)। वे __ कहते हैं । 'बचन कहहिं जनु परिमारथी ।' मा० ६.११००२ (२) उब० (सं० कथयामः>प्रा० कहामो>अ० कहहुं) । हम कहते हैं । 'सुनहु भरत हम झूठ न
कहहीं।' मा० २.२१०.३ कहहिंगे : आ०भ०० पूब । कहेंगे । 'क्यों कोसिकहि कहहिंगे।' गी० १.६६.१ कहहि : आo-आज्ञा-मए । तू कह । 'सत्य कहहि दस कंठ सब ।' मा० ६.२३ ख कहहुं : आ०- संभावना-प्रब० । वे कहें, कहा करें, कहते रहें। तो कहीं जानहुं
नाथ।' मा० ७.१३.६ कहहु, हू : आ०मब० (सं० कथयथ, कथयत>प्रा० कहह>अ० कहहु)। कहो
(कहते हो, कहती हो) । 'मधुकर कहहु कहन जो पारो।' कृ० ३४ 'हम सन
सत्य मरम किन कहहू ।' मा० १.७८.३ कहाँ : कहूँ। किस स्थान पर। मा० २.१५५.२ कहा : (१) भू० कृ०० (सं० कथित>प्रा० कहिअ)। कथन किया। 'कहा बिविध
बिधि ग्यान बिसेषा ।' मा० ७.१७.३ (२) सर्वनाम- नपुंसक । क्या । 'करइ
त कहहु कहा बिस्वासा ।' मा० ७.४६.३ कहाइ, ई : पूकृ० (सं० कथापयित्त्व>प्रा. कहाविअ>अ० कहावि)। कहला
कर । 'मोर दास कहाइ नर आसा करइ ।' मा० ७.४६.३ कहाउति : सं०स्त्री० (सं० कथोक्ति=कथालाप=कथावार्ता>प्रा० कहाउत्ति) ।
बातप्रिसंग में कथन, बात जीत में आई उक्ति । 'भरत कहाउति कही सुनाई।'
मा० २.२६६.४ कहाउब : भकृ०० (सं० कथापयितव्य>प्रा० कहाविअन्व)। कहलाना, खयाति
लेना । 'नाहिं त छाड़ कहाउब रामा ।' मा० १.२८१.२ कसाए, ये : भूकृ.पुं० । कहलाये । 'लछिमन कहुँ कटु बचन कहाए ।' मा० ६.६६.८