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तुलसी शब्द-कोश अवयव । 'अंग-अंग पर वारिअहिं ।' मा० १.२२० (४) सहायक । 'रडरे अंग जोगु जग को है।' मा० २.२८५.५ (५) योग के आठ अङ्ग-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि (६) राजनीति के सात अङ्ग-स्वामी, अमात्य, सुहृद, कोष, राष्ट्र, दुर्ग और सेना । 'सकल अंग
संपन्न सुराऊ। मा० २.२३५.८ अंगद : सं० पु० (सं०) (१) वाली का पुत्र वानर विशेष । मा० ४.११
(२) बाहु भूषण विशेष । 'पहुंची अंगद ।' गी० १.४३.२ अंगन : सं० पु० (सं०) आंगन, मैदान, रणक्षेत्र । मा० ६.८१ छं० अंगना : सं० स्त्री० (सं०) सुन्दर अङ्गों वाली स्त्री कवि ७.१५१ मंगनि, न्हि : 'ग'+संब० । अंगों (में, पर, ने, से आदि) । 'भूषन अंग
अगन्हि प्रति सजे।' मा० ७.१२ छं० २ 'विभूषन उधम अंगनि पाई।"
कवि० २.१ मंगा : अंग । मा० ५.१६.४ अंगार, रा: सं० पुं० (सं० अङ्गार) आग का गोला । मा० ५.१२ मंगोकारा : सं० पु० (सं० अङ्गीकार)। स्वीकार (अपना अङ्ग बना लेना)। ___ 'तासु साप करि अंगीकारा।' मा० १.८६.४ मंगु, गू : 'मंग+कए। शरीर मात्र । 'सूखहि अधर जाइ सबु अंगू।' मा०
२.४०.१ अंगुल : सं० ० (सं०) अंगुली की चौड़ाई की नाप । मा० ७.७६ अंगुलि : सं० । स्त्री० (सं०) । कर शाखा । मा० १.११७.३ अंगुलिवान : सं०० (सं० अङ्गलित्राण) हस्तकवच (दस्ताने जैसा अंगलियों
का वर्ग) । गी० ७.१७.८ अंघ्रि : सं० पु. (सं०) चरण । मा० ७.१४.६ अंचल : सं० पु० (सं०) परिधान का छोर जो गले से नीचे कटि से ऊपर रहता
है=ओढ़नी का दामन । मा० १.३११ छं० अचलु : कए । 'चरन नाइ सिर अंचलु रोपा।' मा० ६.६४ अंजन : सं० पुं० (सं०) कज्जल (दष्टि रोग निवारण की औषधि) दीप्त करने
वाला साधन । 'गुरु पद रज मृदु मंजुल अजन ।' मा० १.२.१ ('निरञ्जन
आदि पदों में 'बाहरी प्रकाशक से निरपेक्ष तथा निर्मल' का अर्थ रहता है।) अंजना : सं० स्त्री० (सं०) । हनुमान् की माता । विन० २६१ अंजलि : सं० स्त्री० (सं.)। करपुट, हाथों से की हुई पात्र जैसे आकृति ।
मा० १.३ मजि: पुष । आंज कर, अंजन लगाकर । मा० १.१