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तुलसी शब्द-कोश
अंजुलि : अजालि । मा० १.१६१.७
अ ंड : सं० पु ं० (सं०) ( १ ) पक्षी आदि का गोलाकार प्रसव (२) ब्राह्मण (जो
अण्डाकार होता है) । 'अ'ड अनेक अमल जसु छावा । मा० २.१५६.१ काह : कढ़ाई का आकार का ब्राह्मण का अर्ध भाग । मा० ७.८० ख अडोस : सं० पु० (सं० अण्डकोश ) ब्राह्मण का भीतरी भाग ।' अंडकोस समेत गिरि कानन ।' मा० ५.२१.६
अंडजराया : अण्डजों पक्षियों के राजा = गरुड | मा० ७.८०.३ अ ंडन्हि : अ ंड+सं० ब० । अण्डों (में) । 'अ'डहि कमठ हृदय जेहि भांति ।'
मा० २.७.८
अत: सं० पु० (सं० ) ( १ ) अवसान, समाप्ति । 'उधराहिं अन्त न होइ निबाहू ।' मा० १.७.६ (२) परिणाम । 'सुनत बात मृदु अन्त कठोरी ।' मा० २.२२.३ अंतःकरण : बोध के आन्तरिक साधन = अन्तरिन्द्रिय । इनकी संख्या चार है(१) संकल्प - विकल्प का साधन = मन ( २ ) अभिमसरूप अहंकार ( ३ ) निश्चयात्मक बोधकाfरणी बुद्धि और (४) इम तीनों का अधिष्ठान चित्त । 'बुधि मन चित अहंकार ।' विन० २०३.५
अंतक: सं० पु० (सं०) अन्त करने वाला = यमराज, मृत्यु । विन० ४६.२ अंतकाल : अन्त का समय = मृत्यु समय । मा० ४.६
अंतर : वि० + सं० पुं०
(सं० ) (१) भेद । 'तुम्हहि रघुपतिहि अंतर केता ।' मा० ६.६.६ (२) भीतर । 'सब के उर अंतर बसहु । मा० २.२५७ (३) भीतरी, आन्तरिक । 'अंतरसाखी' मा० ६.१०८.१४ (४) बीच में । 'उभय अंतर एक नारि सोही ।' गी० २.१६.२
अंतरगत वि० (सं० अन्तर्गत ) । भीतर स्थित । 'जलचर बृन्द जाल अंतरगत ।'
मनोभाव ।
विन० ६२.६
अंतरगति सं० स्त्री० (सं० अन्तर्गति) अन्त:करण की दशा,
गी० ५.१६.३
अंतरजामिनि : वि० स्त्री० [सं० अन्तर्यामिनी) जीवों के भीतर व्याप्त रहकर नियन्त्रित करने वाली प्रेरक शक्ति । गी० १.७२.२
अंतरजामी: वि० पुं० (सं० अन्तर्यामिन् ) । ब्रह्म का तुरीय रूप जो सभी जीवों में व्याप्त एवं सूक्ष्म है । प्राणिनामन्तर्ममयति इत्यन्तर्यामी - सभी प्राणियों की वही प्रेरक शक्ति है । 'अन्तराविश्यभूतानि यो विभत्यत्मकेतुभिः । अन्तर्यामीश्वरः साक्षात् ।' अन्तर्यामी साक्षात् परमेश्वर है जो प्राणियों के भीतर आवेश लेकर अपने संकेतों से उनको प्रेरित करता है। रामानुज दर्शन में इसी की उपासना को सर्वोपरि बताया गया है । मा० १.५१.५
अंतरधान सं०पु० (सं० अन्तर्धान) अदृश्य होना । मा० १.७७.७