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· तुलसी शब्द-कोश
कसम: सं०स्त्री० (अरबी – कसम = सौगन्द ) । शपथ । 'कसम खाइ तुलसी भनी ।' गी० ५.३६.६
कसमसत वकृ०पुं० (सं० कष मष हिंसायाम् ) । घर्षण करता, सम्मर्दन पूर्वक गति लेता । गी० ५.२२.६
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कसमसात : कसमसत । 'कसमसात आई अति घनी ।' मा० ६.८७.१ कसम से : भू० कृ०पु ं० ( ब०) संघर्षण करने लगे, परस्पर घिसने लगे, कुलबुला उठे । 'त्रोन सायक कसम से' मा० ६.६१.छं०
कसह, हीं : आ०प्र० (सं० कषन्ति > प्रा० कसंति > अ० कसह ) । कष्ट देते हैं, क्लेशित करते हैं । 'कहि जोग जप तप तन कसहीं ।' मा० २.१३२.७ - कसाई : सं०पु० (सं० कषायिन् = हिंसक > प्रा० कसाई - अरबी कस्साब == बूचर ) | पशुवध व्यवसायी । 'कासी कामधेनु कलि कुहत कसाई है ।' कवि० ७.१८१ कसि : (१) कैसी ( अ० कइसी = कइसि ) । 'मोरें हृदय कृपा कसि काऊ ।' मा० १. २८०.२ ( २ ) पूकृ० (सं०कसित्वा- —कस बन्धने > प्रा० कसिअ > अ० कसि ) । कसकर, हढ बाँध कर । 'बाँधि जटा सिर, कसि कटि भाथा ।' मा० .२.२३०.२
करें : क्रि०वि० (सं० कसितेन > प्रा० कसिएण > अ० कसिएं ) । बाँधे हुए ( मुद्रा में ) । 'मुनिपट कतिन्ह कसें तुनीरा ।' मा० २.११५.८ (२) (सं० कर्षेण > प्रा० कसेण > अ० कसें ) । कसौटी पर कसने से, निकष-परीक्षण द्वारा । 'कसे कनकु मनि पारीख पाएँ ।' मा० २.२८३.६
कसे : भक०पु०ब० (सं०कसित > प्रा० कसिय) । बाँधे । 'बसन बन ही के कटि कसे हैं बनाइ ।' कवि० २.१५
कहौं : आ०भ० उ० (सं० कषयिष्यामि >> प्रा० कसाविहिमि > अ० कसा विहिउँ ) | कसौटी पर कसाऊँगा, निकष-परीक्षण कराऊँगा । 'चित कंचनहि कसं हौं ।' विन० १०५.२
कसौटी : सं०स्त्री० (सं० कष -' - पट्टिका > प्रा० कसवट्टिआ > अ० कस पट्टी ) । निकष, सोना परखने का काला पत्थर । 'स्यामरूप सुचि रुचिर कसोटी, चित कंचनहि कसं हौं ।' विन० १०५.२
कस्यप : सं०पु० (सं० कश्यप ) । ऋषि विशेष जो प्राणिसृष्टि के आदि पुरुष हैंविशेषत: देव, दानव, दैत्य, नाग आदि के पिता के रूप में पुराण प्रसिद्ध हैं ।"
मा० १.१२३.३
कस्यो : भू० कृ०पु०कए० । दृढ़ता से बाँधा । 'कटि तट परिकर कस्यो निषंगा ।"
मा० ६.८६.१०