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तुलसी शब्द-कोश
कर्कश : वि० (सं०) । परुष, कठोर, अस्निग्ध (खरखरा) । 'कपिश कर्कश जटाजूट
धारी ।' विन० २८.२ कर्ण : महाभारत में दुर्योधन के पक्ष का एक वीर पुरुष जो कुन्ती का पुत्र था।
विन० २८.३ कर्ता : वि०० (सं० कर्ता) । करने वाला, कारक । मा० ७.६२.६ कर्तारी : (सं० पद) । (दो) करने वाले । मा० १.श्लो० १ कर्दम : सं०० (सं०) (१) ऋषि विशेष । मा० १.१४२.५ (२) कीचड़, पङक कर्दमावत : कर्दम=कीचड़ से आटत; मल से ढका हुआ। कर्दमावत सोवई ।'
विन० १३६.३ कर्पूर : सं०० (सं०) । सुगन्धित द्रव्य विशेष । कवि० ७१५० कर्म : (दे० करम) । (१) कायिक चेष्टा, किया। मा० १.१८.६ (२) तत्त्व
विशेष । 'काल कर्म गुन ग्यान सुभाऊ।' मा० १.२०२.२ (३) वर्णाश्रम धर्म के नियत आचरण । 'निज-निज कर्म निरत श्रुति रीती।' मा० ३.१६.६ (४) प्रारब्ध आदि विविध कर्म विषाक । 'जेहिं जोनि जन्मों कर्म बस ।' मा० ४.१०.छं० २ (५) कर्मकाण्ड । मा० ३.३६.छं० (६) शास्त्र विहित या मर्यादानुसार कार्य । 'मृतक कर्म बिधिवत सब कीन्हा ।' मा० ४.११.८ (७) कौशल । 'सिल्पि कर्म जानहिं नलनील ।' मा० ६.२३.५ (८) शुभा शुभ आचरण जो भाग्य का रूप लेता है। मा० ७.४१.५.७ (8) व्यवसाय । 'उपरोहित्य कर्म अति मंदा।' मा० ७.४८.६ (१०) अवतारी लीला। मा० ७.५२.३ (११) कर्मयोग, फला शक्ति रहित व्यापार । 'प्रभुहि समपि कर्म भव तरहीं।' मा० ७.१०३.२ (१२) संचित तथा क्रियमाण कर्म जो ज्ञान से समाप्त हो जाते हैं । 'कर्म कि होहिं स्वरूपहि चीन्हें ।' मा०७११२.३ (१३)
वैष्णव तत्त्व विभाग में अन्यतम तत्त्व मा० ७.२१ कर्मना : (सं० कर्मणा-दे० कर्म)। कर्म से, कार्यों द्वारा। 'मनसा बाचा कर्मना
तुलसी बंदत ताहि ।' वैरा० २६ कर्मनास : करमनास । कर्मनाशा नदी ।। 'मज्जन पान कियो के सुरिसरि कर्मनास
जल छानी। क०४६ कर्मपथ : कर्मयोग का मार्ग, अनासक्त कर्म मार्ग । विन० १०.७ कर्मा : कर्म । मा० ७.४६.१ कk : कर्म+कए० । विशिष्ट कार्य । 'जन्म कम प्रतापु पुरुषारथु महा।' मा०
११०३.छं० कर्यो : कियो। किया। 'मायानाथ अति कोतुक कर्यो ।' मा० ३.२०.छं० कर्षण : वि० । खींचने वाला । 'जयति मंदोदरी केश-कर्षण ।' विन० २६.४