________________
132
तुलसी शब्द-कोश करम : सं०० (सं.)। करतल मूल से कनगुरिया तक का चिकना पुष्ट हस्त
भाग । 'काम तून तल सरिस जानु जुग, उरु करि कर करभहि विलखावति ।'
गी० ७.१७.५ करम : सं०० (सं० कर्मन्) । (१) क्रिया, चेष्टा । कायिक व्यापार । 'करउँ
प्रनाम करम मन बानी।' मा० १.१६.७ (२) अनासक्त कर्म, फल-निरपेक्ष क्रिया, कर्म योग । 'नहिं कलि करम न धरम बिबेक ।' मा० १.२७.७. (३) इतिकर्तव्यता, कर्तव्याकर्तव्य । विधिनिषेधय..... करम कथा।' मा० १.२.६ (४) लीला, अवतारी कर्म । 'जनम करम अगनित श्रुति गाए।' मा० १.११४.३ (५) शभ, अशुभ तथा मिश्र कर्म जो प्रारब्ध संचित तथा क्रियमाण वर्गों में बँटकर जन्म और फलभोग के कारण बनते हैं । 'करम सुभासुभ तुम्हहि न बाधा।' मा० १.१३७.४ (६) प्रारब्ध, भाग्य । 'करम लिखा जौं बाउर नाहूं।' मा० १.६७.७ (७) रामानन्द दर्शन में ३० तत्त्वों का अन्यतम तत्त्व:प्रकृति, महत्, अहंकार, मन, १० इन्द्रिय, ५ सूक्ष्म भूत, ५ महाभूत, जीव, परमेश्वर, गुण, काल, स्वभाव और कर्म । 'काल सुभाउ करम बरिआईं।' मा०
१.७.२ करमचंद : प्रारब्ध कर्मों के लिए कविकल्पित नाम जो भाग्य' को मानवीकरण में
प्रस्तुत करता है-भाग्यरूपी पुरुष । 'हमहिं दिहल करि कुटिल करमचंद मंद
मोल बिनु डोला रे ।' विन० १८६.२ करमठ : वि०+सं०० (सं० कर्मठ) । कर्मरत, कर्मपरायण, कर्मयोगी या कर्म
काण्डी-जन । 'करमठ कठमलिआ कहैं ।' दो० ६६ करमन : सं०० (सं० कार्मण) । जादू-टोना; पिशाचादि साधना; मारण, मोहन,
वशीकरण, उच्चाटन की आभिचारिक क्रियाएँ । 'करमन कूट की कि जंत्रमंत्र
बूट की।' हनु० २६ (यहाँ 'कारमन' पाठ अधिक उपयुक्त है।) करमनास : सं०स्त्री० (सं० कर्मनाशा) । एक नदी जिसमें स्नान करने से कर्मों का
नाश माना जाता है । मा० २.१६४.७ करमा : करम । मा० ३.३६.२ करमाली : वि० सं०० (स० करमालिन =किरणमालिन्) । किरणों के समूह ___से युक्त-सूर्य । दिबाकर..... हिमतम करि केहरि करमाली।' विन० २.२ करमी : वि०पू० (स० कर्मिन्) । कर्मकाण्डी, कर्मयोगी, फलासक्ति से रहित कर्म
करने वाला । विन० २५९.३ करमु, मू : करम+कए । (१) भाग्य । 'फिरा करमु प्रिय लागि कुचाली।' मा०
२.२०.४ (२) कर्तव्य कर्म । 'सो सुखु करमु धरम जरि जाऊ।' मा० २.२६१.१ (३) आचरण, व्यवहार, कार्यकलाप । 'तुम्हहि बिदित सब ही कर करमू । मा०२३०५.३