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तुलसी शब्द-कोश
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करमुद्रिका : सस्त्री० (स) । अंगूठी । मा० ४.२३.१० कररत : वक०० (स० कद्+रटत्>प्रा० करडंत) । कटु रटन करता । 'का
का कारत काम । दो० ४३६ करवट : सं. स्त्री (सं० कर-वर्त ?) । पाश्वपरिवर्तन । मा० २.४३ करवर : सं० स्त्री० (सं० कर्वर =सिंह, व्याघ्र आदि हिंसक जीव) । (हिन्दी में) ___ संकट, विपत्ति, आकस्मिक उत्पात । 'आजु परी कुसल कठिन करवट तें।'
कृ० १७ करवरें : करवर+ब० । आपत्तियां । मा० १.३५७.१ करवा : सं०० (सं० करक>प्रा० करअ)। मिट्टी का जलपात्र। 'मलीन धरें
कथरी करवा है ।' कवि० ७.५६ करवाइ : पूकृ० । करवा कर । 'पुनि जागु करवाइ रिषि राजहि दीन्ह प्रसाद ।'
स०प्र० १.२.५ करवाई : भूकृ० स्त्री० । मा० १.१०१.१ करवाउब : भकृ०० (सं० कारयितव्य>प्रा० कराविअव्व)। करवाना होगा
(करवाएंगे)।' करवाउब बिबाहु बरिआइ ।' मा० १.८३.६ करवाए : भूकृ० पु०ब० (सं० कारित>प्रा० कराविअ) । मा० १.१४३.७ करवायउ : भूकृ० पु. कए । करवाया । 'मारि निसाचर निकर जग्य करवायउ।'
जा० मं० ३८ करवायो : करवायउ । 'तिन्ह बह बिधि भज्जन करवायो।' मा० ६.१०६.६ करवाव करवावइ : (सं०कुर्वन्त प्रेरयति कारयति>प्रा० करावइ; सं० कारयन्तं प्रेरयति कारयति>प्रा० करवावइ) इस दुहरी प्रेरणा के हिन्द में ही उदाहरण मिलते हैं- दशरथ यज्ञ करते हैं; ऋष्यरङ्ग उन्हें यज्ञ कराते हैं और वसिष्ठ ऋष्य रङ्ग से दशरथ को यज्ञ करवाते हैं । इस सन्दर्भ में इस धातु के ऊपर
नीचे बहुल उदाहरण द्रष्टव्य हैं। करवावहिं : आ० प्रब० (सं० कारयन्ति>प्रा० करावावंति>अ० करावावहिं)।
करवाते हैं । 'साधुन्ह सन करवावहिं सेवा ।' मा० १.१८४.२ करवावा : भूक पु० (एक०) । (सं० कारित-प्रा० करावाविस)। करवाया।
'विविधि भांति भोजन करवावा ।' मा० १.२०७.४ 'करष : सं०स्त्री० (सं० कर्ष) । खिंचाव, तनाव (१) द्वेष । 'कंत करष हरिसन
परिहरहू ।' मा० ५.३६.६ (२) शेष, आवेश । 'बातहिं बात करष बढ़ि आई।' मा० ६.१८.४