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तुलसी शब्द-कोश
कमलनि, न्हि : कमल+सं०ब० । कमलों। 'कमलन्हि पर करि बास ।' मा०
६.२२ ख कमलावली : (सं.)। कमल श्रेणी, कमल समूह । गी० १.३८.४ कमलापति : कमला लक्ष्मी के पति विष्णु । मा० १.१३५.२ कमलासन : सं०० (सं०) । विष्णु के नाभि कमल पर आसन किये हुए ब्रह्मा
जी। मा० १.५८.७ कमानो : क्रियाति० पु. एक० । यदि अर्जन करता है। 'जो तू मन मेरे कहे राम
नाम कमातो।' विन० १५१.३ कमान : सं० स्त्री० (फा०) । धनुष । मा० २.४१.२ कमान : कमान पर । तिलकु ललित सर भृकुटी काम कमाने ।' जा०म० ५१ कमाहि : आप्रब० । उपार्जन करते हैं, काम करके पुरस्करादि लाभ पाते हैं । 'सब
भूपति भवन कमाहिं ।' गी० १.२.२३ । कर : (१) सं०० (सं०) । हाथ । मा० २.४८.७ (२) सम्बन्धार्थक वि० =केर ।
का । 'कानन काह राम कर काजू ।' मा० २.५०.२ (३) सं०० (सं०) । किरण । 'हरण मोह तम दिनकर कर से ।' मा० १.३२.१० (४) सं०० (सं०) । हाथी की सूड । 'करि कर सरिस सुभग भुजदंडा।' मा० १.१४७.८ (५) (समासान्त में) वि० (सं०) । करने वाला । दिनकर, निसाकर आदि । (६) (समासान्त में) वि० (सं०) । हाथ में धारण किये हुए । 'शूल-सायकपिनाकासि-कर ।' विन० १०.४ (७) करइ । करती-ती-है, करे, कर सकता है।
'लोकमान्यता अनल सम कर तप काननदाहु ।' मा० १.१६१ क /कर, करइ, ई : (सं० करोति>प्रा० करइ-करना) आ०प्रए । करता है,
करती है । 'करइ सदा नप सबक सेवा।' मा० १.१५५.४ 'सोइ सादर सर
भज्जन करई ।' मा० १.३९.६ करत : करत । 'काढ़त दंत करंत हहा है।' कवि० ७.३६ करउँ, ऊ : आ०उए० । करता हूं, करती हूं। मा० १.२.४ करउ : आ० प्रेरणा, आज्ञा, प्रार्थना आदि-प्रए०। (सं० करोतु>प्रा० करउ)
वह करे । 'सो सतसंग करउ मन लाई ।' मा० १.३६.८ करक : सं०स्त्री० । चाबुक आदि की बरत, प्रहार से जनित लम्बी सूत जैसी लकीर,
सूत्राकार लम्बी फटन । 'जाने साई जाके उर कसकै करक सी।' गी० ४४.२ करकस : कर्कश । हनु० २ करके : भकपु० ब० । करक उठे, व्रण की सी कसकनदे चले, मर्म स्थान में दरार
कीसी पीड़ा देने लगे । 'सर सम लागे मातु उर करके।' मा० २.५४.१