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तुलसी शब्द-कोश
औत : सं००+स्त्री० (सं० आपूर्त = आपूर्ति>प्रा० आउत्त=आउत्ति)। घाव
आदि (या गड्ढे आदि) का भरना। चैन, तृषा आदि की पूर्ति, आराम ।
'औत पावै न मनाक सो।' कवि० ५.२५ प्रौतेहु : क्रियाति० पु० मब० । तुम आते । 'जौं तुम्ह औतेहु मुनि की नाई।' __ मा० १.२८२.३ औध : अवध । कवि० २.१ औनिप : अवनिप । राजा । कवि० ७.१६४ औनिपनि : औनिप+संब० । राजाओं (ने) । कवि० १.१६ और : अउर । 'मेरे जान और कछु न मन गुनिए।' कृ० ३७ औरउ : और भी, अन्य भी । 'औरउ जे हरि भगत सुजाना ।' मा० १.३०.८ औरन, नि : और+संब० (१) (सं० अपरेषाम् >प्रा० अवराण) । औरौं । 'कुमयाँ
कछु हानि न औरन की ।' कवि० ७.४७ (२) औरों को। 'तेरे बेसाहे बेसाहत ___औरनि ।' कविः ७.१२ (३) औरौं का। कवि० ४.१ औरहि : और को, अन्य के प्रति । 'जरि जाउ सो जीह जो जाचत औरहि ।'
कवि० ७.२६ औरहु : औरउ । और भी । गी० ७.३८.८ औरु : और+कए । अन्य कोई (एक)। और कर अपराध कोउ।' मा०
२७७ औरे : 'और' का रूपान्तर। दूसरे (से)। 'बनिहै बात उपाइ न औरे ।' गी०
२.११.२ औरेब : अवरेब। औरेब : औरव+ब० । गाँठे, वक्रताएं, कुटिल करतूतें ; 'हमहूं कछुक लखी ही
तब की औरेबै नंदलाला की।' कृ० ४३ और : और ही, अन्य ही, कोई विलक्षण । 'और आगि लागि, न बझाव सिंधु
सावनो।' कवि० ५.१८ औरी : औरउ । गी० ६.१७.१ औषध : सं०० (सं.)। (१) वनस्पति आदि । 'औषध मूल फूल फल नाना ।'
मा० २.६.२ (२) दवा, औषधियों का मिश्रण जो चिकित्सा के काम आता
है । 'बिनु औषध बिआधे बिधि खोई ।' मा० १.१७१.४ औषधी : ओषधी। मा० ६.५५ । औषधु : औषध+कए। एक भी उपचार, कोई दवा । 'एहि कुरोग कर औषधु
नाहीं।' मा० २.२१२.२ औसर : अवसर । कवि० २.२२ प्रोसरा : औसर । दो० ४६६