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________________ तुलसी शब्द-कोश 113 ओल : सं०० (सं० ओल्ल =शरीर बन्धक)। वह दास जिसका शरीर धरोहर हो, क्रीतदास, गुलाम । 'बाजे-बाजे राजन के बेटा-बेटी ओल हैं।' कवि. ५.२१ ओषधी : सं० स्त्री० (सं ओषधि)। जड़ी, चिकित्सा हेतु मूल आदि । रा०प्र० ७.२.१ ओस : सं०स्त्री० (सं० अवश्याय>प्रा० ओसा) । तुषार पंकज कोस ओस कन जैसें ।' मा० २.२०४१ ओसरिन्ह : ओसरी+ संब० । ओसरियों (से)। 'ओसरिन्ह गावै सुहो।' गी० ७.१८.५ ओसरी : सं० स्त्री० (सं० अवसर>प्रा० ओसर) । क्रम, बारी, पर्याय । ओहार : सं० स्त्री० (सं० अवसर>प्रा० ओसर)। पालकी आदि का वाता वरण । 'सिबिका सुभग ओहार उघारी।' मा० १.३४८.८ ओही : सर्वनाम (सं० असौ>प्रा० अहो>अ० ओह) । (१) वह, उसे । 'आन भांति नहिं पावौं ओही।' मा० १.१३२.६ (२) उसने । 'भलो ठग्यो ठमु ओही ।' कृ० ४१ . ओहू : (अ० ओह+कए=ओह)। वह । “पिता बचन मनतेउँ नहिं ओहूं।' मा० औ ओ : और। (१) कवि० ७.१२२ (२) अव्यय – समुच्चयार्थक । जैसे, मोरिओ। औगुन : अवगुन । कवि० ७.१७४ औचट : अवचट । 'तिजरा को सो टोटक औचक उलटि न हेदो।' विन० २७२.२ ओटि : पूक० (१) (सक्वथित्वा =प्रा० अट्टिअ>अ० अट्टि) । उबलकर, क्वथित होकर। (२) (स आवर्त्य>प्रा. आवट्टिअ>अ० आवट्टि)। आवर्त गति लेकर, भ्रमण कर, उलट-फेर कर, आवागमन करके । 'कलट कोटि लगि औटि मरौं ।' विन० १४१.६ औढर : अवढर । कवि० ७.१५९
SR No.020839
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages564
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size32 MB
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