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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७२ www.kobatirth.org तत्त्व- समुच्चय रुद्र - ११ भीमावलि, जितशत्रु, रुद्र, विश्वानल, सुप्रतिष्ठ, अचल, पुण्डरीक, अजितंधर, अजितनाथ, पठि और सात्यकित, ये ग्यारह तीर्थंकर कालमें रुद्र होते हैं जो अधर्मपूर्ण व्यापार में संलग्न होकर रौद्र-कर्म करते हैं ॥५५-५६॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीर भगवान् महावीर कुण्डलनगर में पिता सिद्धार्थ और माता प्रियकारिणी से चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में उत्पन्न हुए ||५७ ॥ भगवान् पार्श्वनाथकी उत्पत्ति के पश्चात् दोसौ अठत्तर वर्षोंके बीत जाने पर वर्धमान् तीर्थंकर अवतीर्ण हुए ॥ ५८ ॥ वर्धमान् भगवान् ने मगसिर कृष्णा दशमीके दिन अपराण्ड कालमें उत्तरा नक्षत्रके रहते नाथवनमें तृतीय भक्त के साथ महाव्रतों को ग्रहण किया ।। ५९ ।। भगवान् नेमिनाथ, मल्लिनाथ, महावीर, वासुपूज्य और पार्श्वनाथ, इन पांच तीर्थंकरोंने कुमारकालमें, और शेष तीर्थंकरोंने राज्यके अन्त में तपको ग्रहण किया ॥ ६० ॥ वीरनाथ भगवानको वैशाख शुक्ला दशमीके अपरान्ह कालमें मघा नक्षत्र के ऋजुकूला नदी के किनारे केवलज्ञान उत्पन्न हुआ || ६१ ॥ रहते भगवान् वीरेश्वर ( महावीर ) कार्तिक कृष्णा चतुर्दशीको प्रत्यूष काल में स्वाति नामक नक्षत्र में पावानगरीसे अकेले ही सिद्ध हुए ॥ ६२॥ 3 तृतीय कालमें तीन वर्ष, आठ मास और एक पक्षके अवशिष्ट रहनेपर ऋषभ जिनेन्द्र, और इतना ही चतुर्थ काल में अवशेष रहनेपर वीरप्रभु सिद्ध पदको प्राप्त हुए ||६३ ॥ वीर भगवान के निर्वाणसे तीन हो जाने पर पाँचवाँ दुपमाकाल प्रवेश वर्ष, आठ मास और एक पक्षके व्यतीत करता है | ६४ ॥ केवली - ३ For Private And Personal Use Only जिस दिन भगवान् महावीर सिद्ध हुए उसी दिन गौतम गणधर परमज्ञानी या केवली हुए । और गौतम के सिद्ध होने पर सुधर्मस्वामी केवली हुए |॥६५॥ सुधर्मस्वामाके कर्मनाश करने पर या मुक्त होने पर जम्बूस्वामी केवली हुए और उनके भी सिद्ध हो जाने पर फिर कोई अनुबद्ध केवली नहीं हुआ ||६६ ||
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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