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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org C Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acha लोक-स्वरूप ये सब कुलोंके धारण करनेसे 'कुलधर' नामसे और कुलोंके करनेमें कुशल होनेसे 'कुलकर' नामसे भी लोकमै सुप्रसिद्ध हैं ।।४४।। अब यहाँसे आगे (नाभिराय कुलकरके पश्चात्) पुण्योदयसे भरतक्षेत्र के मनुष्यों में श्रेष्ठ और समस्त भुवन विख्यात तिरेसठ शलाका-पुरुष उत्पन्न होने लगते हैं ॥४५॥ ये शलाका-पुरुष तीर्थकर, चक्रवर्ती, बलभद्र, हरि (नारायण) और प्रतिशत्रु, (प्रतिनारायण ) इन नामोंसे प्रसिद्ध हैं । इनमेसे तीर्थंकरों की बारह दुगुणे अर्थात् चौबीस, चक्रवर्तियों की बारह, बलभद्रोंकी नौ ( पदार्थ ), नारायणों की नौ (निधि ) और प्रतिशत्रुओंकी भी नौ ( रंध्र ) संख्या है ॥४६॥ तीर्थकर-२४ उनमेमे ऋषभ, अजित, संभव, अभिनंदन, सुमति, पद्मप्रभ, सुपार्श्व, चंद्रप्रभ, पुष्पदंत, शीतल, श्रेयांस, वासपूज्य, विमल, अनन्त, धर्म, शान्ति, कुंथु, अर, माल, सुव्रत, नमि, नेमि, पार्श्व, वर्धमान, इन भरत क्षेत्र में उत्पन्न हुए चौवीस तीर्थंकरोंको नमस्कार करो। ये ज्ञानरूपी फरसेसे भव्य जीवों के संसार-रूपी वृक्ष को काटते हैं ।।४७ -४९।। चक्रवर्ती-१२ भरत, सगर, मघवा, सनत्कुमार, शान्ति, कुन्थु, अर, सुभौम, पद्म, हरिषेण, जयसेन, और ब्रह्मदत्त, ये छह खण्डरूप पृथिवी मंडलको सिद्ध करनेवाले और कीर्तिसे भुवनतलको भरनेवाले बारह चक्रवर्ती भरतक्षेत्रमें उत्पन्न हुए ॥५० -५१॥ बलदेव-९ विजय, अचल, सुधर्म, सुप्रभ. सुदर्शन, नन्दी, नन्दीमित्र, राम और पद्म, ये नौ भरत क्षेत्रमें बलदेव हुए ॥५२॥ नारायण-९ उसी प्रकार त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयम्भू, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, (पुरुष-) पुण्डरीक, (पुरुषः) दत्त, नारायण (लक्ष्मण) और कृष्ण, ये नौ विष्णु (नारायण) हुए ॥५॥ प्रतिनारायण-९ अश्वीव, तारक, मेरक, मधुकैटभ, निशुम्भ, बलि, प्रहरण, रावण और जरासंध, ये नौ प्रतिशत्रु या प्रतिनारायण हुए ॥५४॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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