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लोक-स्वरूप
शकराज धीर जिनेन्द्र के मुक्तिप्राप्त होनेके चारसौ इकसठ वर्ष पश्चात् यहाँ शकराजा (विक्रमादित्य ?) उत्पन्न हुआ । अथवा, वीर भगवान के निर्वाणके पश्चात् छह सा पाँच वर्ष और पांच महीनों के चले जानेपर शकनृप उत्पन्न हुआ । वीर भगवान्के निर्वाणके पश्चात् चारसौ इकसठ वर्षों के बीतनेपर शकनरेन्द्र उत्पन्न हुआ । इस वंश के राज्यकालका प्रमाण दो सौ ब्यालीस वर्ष है ।।६७.६८-६९।।
गुप्तोंके राज्यकालका प्रमाण दो सौ पचपन वर्ष और चतुर्मुख के राज्यकालका प्रमाण ब्यालीस वर्ष है। इस सबको मिलानेपर (४६१+२४२+२५५+४२=) एक हजार वर्ष होते हैं, ऐसा कितने ही आचार्य निरूपण करते हैं ॥७०॥
जिस समय वीर भगवान्ने मोक्षलक्ष्मीको प्राप्त किया उसी समय अवन्तिसुत पालकका राज्याभिषेक हुआ ॥७१॥
साठ वर्ष पालक का, एकसौ पचपन वर्ष विजयवंशियोंका, चालीस वर्ष मुरुडवंशियोंका और तीस वर्ष पुष्यमित्रका राज्य रहा ॥७२॥
- इसके पश्चात् साठ वर्ष वसुमित्र-अग्निमित्र, एक सौ वर्ष गन्धर्व, और चालीस वर्ष नरवाहन राज्य करते रहे । पश्चात् भृत्य-आंध्र (आंध्रभृत्य ?) उत्पन्न हुए ॥७३॥
इन भृत्य-आंध्रों का काल दो सौ ब्यालीस वर्ष है। इसके पश्चात् गुप्तवंशी हुए, जिनके राज्यकाल का प्रमाण दो सौ इकतीस वर्ष है ॥७४।।
फिर इसके पश्चात् इन्द्रका सुत कल्कि उत्पन्न हुआ। इसका नाम चतुर्मुख, आयु सत्तर वर्ष, और राज्यकाल द्विगुणित इक्कीस अर्थात् ब्यालीस वर्ष रहा ।।७५।।
कल्कि प्रयत्नपूर्वक अपने योग्य जनपदोंको वशर्मे करके लोभी हुआ मुनियोंके आहारमैसे भी अग्रपिण्डको शुल्क मांगने लगा ॥७६॥
तब किसी असुरदेवने अवधिज्ञानसे मुनिगणोंके उपसर्गको जानकर और कल्किको धर्मका द्रोही मानकर मार डाला ॥७७॥
तत्र अजितंजय नामक उस कल्किके पुत्रने रक्षा करो' इस प्रकार कहकर उस देवके चरणोंमें नमस्कार किया। अतः उस देवने 'धर्मपूर्वक राज्य करो' इस प्रकार कहकर उसकी रक्षा की ॥७८॥
तबसे दो वर्ष तक लोगोंमें समीचीन धर्मकी प्रवृत्ति रही। फिर क्रमशः कालके माहात्म्यसे वह प्रतिदिन हीन होने लगी ।।७९)
[ यतिवृषभकृत त्रिलोकप्रज्ञप्ति ]
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