________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
मार्गणा स्थान
मगपज्जवं ति उच्चइ जं जाणइ तं खु णरलोए || ३४ ॥ ४३७
संपुष्णं तु समग्र केवलमसवत्त सव्वभावगयं । लोयालोयवितिमिरं केवलणाणं मुणेदव्वं ॥ ३५ ॥ ४५९
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
९ दर्शन
जं सामण्णं ग्रहणं भावाणं णेव कटटुमायारं ।
८ संयम
बद-स
- समिदि - कसायाणं दंडाण तहिंदियाण पंचन्हं |
धारण- पालण- णिग्गह- चाग-जओ संजमो भणिओ ॥ ३६ ॥ ४६४
अविसेसण अट्टे दंसणमिदि भण्णदे समये ॥ ३७ ॥ ४८१ चक्खूण जं पयासह दिस्सर तं चक्खुदंसणं बेंति । सेसिंदियप्पयासो गायव्वो सो अचक्खू ति ॥ ३८ ॥ ४८३ परमाणु - आदियाई अंतिमखंध त्तिमुत्तिदव्वाई ।
तं ओहिंदंसणं पुणे जं पस्सइ ताई पच्चक्खं ॥ ३९ ॥ ४८४ बहुवि - बहुप्पयारा उज्जवा परिमियम्मि खेत्तम्मि | लोगालोगवितिमिरो जो केवलदंसणुज्जोओ ॥ ४० ॥ ४८५ १० लेश्या
लिंप अप्पीकीरह एदीए नियअपुण्णपुण्णं च ।
४९
जीवो त्ति होदि लेस्सा लेस्सागुणजाणयक्खादा ॥ ४१ ॥ ४८८ जोगपउत्ती लेस्सा कसायउदयाणुरंजिया हो ।
तत्तो दोष्णं कज्जं बंधचउक्कं समुद्दि || ४२ ॥ ४८९ किण्हा णीला काऊ तेऊ पम्मा य सुक्क लेस्सा य । लेस्साणं णिदेसा छच्चेव हवंति णियमेण ॥ ४३ ॥ ४९२ तिव्वतमा तिव्वतरा तिव्वा असुहा सुहा तहा मंदा | मंदतरा मंदतमा छट्ठाणगया हु पत्तेयं ॥ ४४ ॥ ४९९ पहिया जे छप्पुरिसा परिभट्टा रण्णमज्झदेसम्हि | फलभरियरुक्खमेगं पेक्खित्ता ते विचितंति ॥ ४५ ॥ ५०६ णिम्भूल-खंच साहुबसाहं छित्तु चिणित्त पडिदाई | खाउं फलाई इदि ज मणेण वयणं हवे कम्मं ॥ ४६ ॥ ५०७
For Private And Personal Use Only