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गृहस्थधर्म
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४-प्रोषधोपवास उत्तम-मझ-जहण्णं तिविहं पोसहविहाणमुदिढे । सगमत्ति एयमासम्म चउरसु पव्वेसु कायव्वं ॥ २३ ॥ २८० जह उक्स्स तहा मझमवि पोसहविहाणमुद्दिष्टुं । णवर विसेसो सलिलं छडित्ता वज्जए सेसं ॥ २४ ॥ २९० मुणिऊण गुरु व कज्ज सावज्ज बज्जिऊण णिरारंभ । जं कीरइ त णेयं जहण्णयं पोसहविहाणं ॥ २५ ॥ २९१
५-सचित्तत्याग जं वजिजं हरियं तु य पत्त-पवाल-कंद-फल बीयं । अप्पासुगं च सलिलं सचित्त-विणिवित्ति तं ठाणं ॥ २६ ॥ २९५
६-दिवा ब्रह्मचर्य व निशि भोजन मण-बयण-कायकय-कारियाणुमोएहि मेहुणं णवधा । दिवसम्हि जो विवज्जइ गुणम्मि सो सावओ उट्ठो ॥ २७ ॥ २९६ एयादसेसु पढमं वि जदो णिसिभोयण कुणतस्स । ठाण ण ठाइ तम्हा णिसिभुत्तं परिहरे णियमा ॥ २८ ॥ ३१४ चम्मट्ठि-कीड-उंदुरु-भुयग-केसाई असणमज्झम्मि । पडियं ण किं पि पस्सइ भुजइ सव्वं पि णिसिसमए ॥ २९ ॥३१५ एवं बहुप्पयारं दोसं णिसिभोयणम्मि णाऊण । तिविहेण राइभुत्ती परिहरियब्वा हवे तम्हा ॥ ३० ॥ ११८
७-ब्रह्मचर्य पुवुत्त णवविहाणं पि मेहुणं सव्वदा विवज्जतो। इथिकहाइ णिवित्तो सत्तमगुणवभयारी सो ।। ३१ ॥ २९७
८-आरंभत्याग जं किं चि गिहारंभं बहु थोग वा समा विवज्जेई । आरंभणियष्टिमई सो अट्ठम सावओ भणिओ ॥ ३२ ॥ २९८
* अन्य श्रावकाचार ग्रंथों में छठवीं प्रतिमा निशिभोजन त्याग की ही मानी गई है, किन्तु प्रस्तुत ग्रंथ के कर्ता ने इस त्याग को प्रथम प्रतिमा से ही अनिचार्य बतलाया है।
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