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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्त्व-समुच्चय २-व्रत पंचेच अणुवयाइं गुणवयाई च होंति पुण तिण्णि । सिक्खावयाणि चत्तारि जाइए विदियम्मि ठाणम्मि ॥ ११ ॥ २०६ पाणाइवायविरई सच्चमदत्तस्स बजणं चेव । थूलयडबम्हचेरं इच्छार गंथपरिमाणं ॥ १२ ॥ २०७ पुव्वुत्तर-दक्षिण-पच्छिमासु काऊण जोयणपमाणं । परदो गमणणियत्ती दिसि णाम गुणव्वयं पढमं ॥ १३ ॥ २१३ वयभंगकारणं होइ जम्मि देसम्मि तत्थ णियमेण । कीरइ गमणणियत्ती तं जाण गुणब्वयं विदियं ॥ १४ ॥ २१४ अयदंड-पासविक्कय-कूडतुला-माण-कूरसत्ताणं । जं संगहो ण कीरइ तं जाण गुणव्वयं तिदियं ॥ १५ ॥ २१५ जं परिमाणं कीरइ मंडण-तंबोल-गंध-पुप्फाण । तं भोयविरइ भणिय पढम सिक्खावयं सुत्ते ॥ १६ ॥ २१६ सगसत्तीए महिला-बत्थाहरणाण जं तु परिमाणं । तं परिभोयणियुत्ती विदियं सिक्खावयं जाण ॥ १७ ॥ २१७ अतिहिस्स संविभागो तिदियं सिक्खावयं मुणेयव्वं । सगिहे जिणालये वा तिविहाहारस्स वोसरणं ।। १८ ॥ २७१ जं कुणइ गुरुपासम्मि य सम्ममालोइऊण तिविहेण । सल्लेखणं चउत्थं सुत्ते सिक्खावयं भणियं ॥ १९ ॥ २७२ ३-सामायिक होऊण सुई चेइयगिह म्मि सगिहे व चेइयाहिमुहो। अण्णत्त सुइपएसे पुब्वमुहो उत्तर मुहो वा ॥ २० ॥ २७४ काउस्सग्गम्मि ठिओ लाहालाहं च सत्तुमित्तं च । जो पस्सइ समभावं मणम्मि धरिऊण पंच णवकारं ।। २१ ॥ २७६ सिद्धसरूत्रं झायइ अहवा झाणुत्तमं ससंवेयं । खणमेवामविचलंगो उत्तमसामाइयं तस्स ॥ २२ ॥ २७८ For Private And Personal Use Only
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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