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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५५ देहसत्कार-प्रोषध ( सरीर-सक्कार-पोसह) - प्रोषधोपवास का भेद २-३४ यत (ज्य ) - पहला व्यसन ३-१० द्रव्य (व्व-) - ७-३९; १६-१० द्रव्यनिक्षेप ( दव-)- निक्षेप भेद १६-३ द्रव्यबन्ध - कर्मप्रदेशों का आत्मा के साथ बन्ध ९-२५ द्रव्यमोक्ष ( दव्वविमोक्ख ) - कर्मप्रदेशों का आत्मा से पृथक् होना ९-३० द्रव्यसंवर ( दव्वः) - कर्मप्रदेशों का निरोध ९-२७ द्रव्यार्थिक नय ( दव्वत्थ- ) - दस भेद १५-५,७ । द्रव्यास्रव (दवासव)- कर्मप्रदेशों का आत्मा से मेल ९-२४ द्रव्येन्द्रिय (दग्विदिय)-इंद्रियों की अंगरूप रचना १३-४ द्विपद ( दुपाय ) - अपरिग्रहाणुव्रत का आतिचार २-२० द्विपृष्ठ ( दुविठ्ठ) - द्वितीय नारायण १-५३ द्वीन्द्रिय-जीव ९-९ धन-अपरिग्रहाणु व्रत का अतिचार २-२० धनिष्ठा (धनिहा)- नक्षत्र १-१८ धर्म ( धम्म ) - द्रव्य विशेष १-४; ९-१०,१७ - १५ वे तीर्थकर १-४८ - सर्वज्ञोपदिष्ट ७-४५ - मंगला० ३,४,५ - भाव संवर का भेद ९-२८ - द्रव्य के गुण १४-१४ धर्मध्यान (धम्म-झाण ) - चार प्रकार का १३-१३ धर्मिन् (धम्मी )- द्रव्य १४-१४ धारणा - मतिज्ञान का भेद १२-३१ धूपन (धूवण ) - मुनि के लिए वर्ण्य ४-९ धूमप्रभा (धूमपहा ) - पाँचवाँ नरक १-८ ध्यान ( झाण )-१३-२ For Private And Personal Use Only
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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