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दत्त - सातवें नारायण - १ --५३ मन्त-प्रधावन ( दंतपहोयण ) - मुनि के लिये वय ४-३ दन्तवन (दंतवण) -- मुनि के लिये वयं ४-९ दर्शन (दसण ) - पहिली प्रतिमा ३-२ दर्शन मार्गणा ( ईसण-) - १२-३७ दर्शनमोहनीय ( दसणमोहणिज) - कर्म, तीन भेद १७ - ८, ५; ५२-५५ दर्शनश्रावक ( दसणसावअ ) - प्रथम प्रतिमा ३-८. दर्शनावरण ( दसणा-- ) - कर्म नव प्रकार का १० -६ दर्शनोपयोग (दंसण.)- जीव लक्षण चार प्रकार का -४ दशमशक - परीषह ८-१०, ११ दानान्तराय - अन्तराय कर्म का भेद १०-१५ दिग्बत (दिसिव्वय ) -- प्रथम गुणव्रत, व्रतप्रतिमा का अंग ३-५३ दिवाकर ( दिवायर ) -- ज्योतिषी देव १-१८ दिवामैथुन-त्याग (दिवामेहुण ) छठी प्रतिमा ३-२७ दिशापरिमाण-करण ( दिसापरिमाण करण) - पहला गुणनत २-२२ दुरभिनिवेश -- ज्ञान का दोष ९-३४ दुर्नयभंगी ( दुणयभंगी) - १४-१२ दुष्पक्व (दुष्पोलिय ) -- उ. प. परिमाण व्रत का अतिचार २-२४ दुःषम -- अवसर्पिणी काल का पाँचवाँ भाग १-४० दुःपमाकाल ( दुस्समकालो)- वीरनिर्वाण से ३ वर्ष ८ मास १ पक्ष पश्चात्
प्रारम्भ हुआ १-६४ दुषमासुषमा ( दुस्समसुसम ) -- अवसर्पिणी काल का चौथा भाग १ -४० देवगति (-गइ) - १२-३ देवायु ( देवाउय ) - आयुर्म का भेद १७ --१२ देशविरत ( देसविरद ) – पाँचवाँ गुणस्थान ३-२; १५-१४ देशव्रत ( देसव्वय ) - द्वितीय गुणवत, व्रतप्रतिमा का अंग ३-१४; ७ -२९ देशसंयम ( देसजम ) - आंशिक संयम ११-९ देशावकाशिक ( देसावगासिय) - दूसरा शिक्षाबत २-३३ देह प्रलोकन ( देह -प्रलोयण ) - मुनि के लिये वर्य ४-३
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