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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir च्यावित ( च्यावित ) - ज्ञायक शरीर नोआगम द्रव्यानिक्षेप मंद १६-७ च्युत (चुद ) - ज्ञायक शरीर नोआगम द्रव्यनिक्षेप-भेद १५-७ छत्रधारण - ( छत्त-) -- मुनि के लिए बऱ्या ४ --१४ छविविच्छेद - अंगछेदन, अहिंसाणुवत का अस्चिार २ -- २ छाया - पुद्गल-पर्याय ९-११ । ज जगणि ( जगसेढि ) - सात राजु प्रमाण १-२ जघन्य कर्मस्थिति (जहाणया- ) - १० - १९ जनपद ( जणपद) - देश १-३० - सत्य-भेद १२-१५ जम्बूद्वीप (-दीअ) १-२९, ३० जम्बूस्वामिन् (जं ब्रूसामी) -- सुधर्म स्वामी के निर्वाण दिन केबलल प्राप्ति, अंतिम केवली १-६६ जयन्त - ( जयंत ) -- तीसरा अनुत्तर विमान १-२५ जयसेन - ( जयसेन ) - ग्यरहवें क्रवर्ती १ - ५० जरासंध - नौवें प्रतिनारायण ५-५४ जितशत्रु (जियसत्तू ) - दूसरे छद्र १ ५५ जिह्वा-जय - ५ -२० जीव - तत्त्व ९-२ ज्येष्ठा ( जेट्ठा ) - नक्षत्र १-१७ ज्ञान-मार्गणा (णाण- ) - सातवीं मागंणा १२.२ ८ ज्ञानावरण (गाणावरण) - पाच भेद १०-४ ज्ञानोपधि ( णाणुवहि ) - पुस्तकादि, मुनियों के रखने योग्य ५.५४ ज्ञानोपयोग ( गाण. ) आठ प्रकार का, ९-१, ५ ज्ञायक देह ( णाणिस देह ) नोआराम द्रव्यनिक्षेपमा १६-१७ तत्त्व (तच्च ) - ३-४ तत्प्रतिरूपव्यवहार (तप्यडिरूवववहार ) - नकली मा बेचना, अचाया। का अतिचार २-:. For Private And Personal Use Only
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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