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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar आत्मप्रशंसा ( अप्पपसंस) - भाषा-भेद ५-१२ आदान-निक्षेप (आदाणणिक्खेव) - समिति-भेद ५-१४ आर्द्रा ( अद्दा) - नक्षत्र १-१६ आनत ( आणद) - ९ वाँ स्वर्ग १ -२० - १३ वां स्वर्ग १-२२ आनप्राण (आणपाण) - जीव-लक्षण, प्राण-भेद ९-३ आपृच्छनी ( पुच्छणी) -- असत्यमृषा भाषा का भेद १२-१८ आप्त (अत्ता) - सच्चा देव ३-४ आभिनिबोधिक आ० ( आहिणि मोहिय ) - मतिज्ञान ज्ञानावरण कर्म का एक भेद १० -४ आमंत्रणी (आमंतणी) - असत्यमृषा भाषा का भेद १२-१८ आयु (आ3) - जीवलक्षण, प्राणभेद ९-३ आयुकर्म ( आउकम्म ) चार प्रकार का १०-१२ आरण - ११ वाँ स्वर्ग १-२० आरम्भ - हिंसा का दूसरा प्रकार, दैनिक क्रिया के निमित्त से होनेवाली हिंसा २ --- आरम्भत्याग - आठवी प्रतिमा ३-२, ३२ आर्जव ( अज्जव) - धर्मोग ६-१ आर्तध्यान (अट्टा-) - चार प्रकार का १३-५ आर्यखंड ( अज्जा.)- दक्षिण भारत के बीच का खंड १-३७ आलाप (आलाव) - संज्ञी जीव द्वारा ग्रहणीय १२-६२ आवश्यक ( आवासय) - मुनि के छह ५-२ आस्रव (आसव ) - भावना ७-२; - कर्म भावरूप ९-२२ आश्लेषा (असिलेसा) - नक्षत्र १-१६ आसंदी पर्यफ (आसंदी पलियंक) - मुनि के लिए वर्व ४-५ आहारक (आहारय ) - काय का भेद १२-२०; १२-६४ आहार प्रोषध (आहार-पोसह ) - ग्रोषधोपवास का भेद २-३४ आहार मार्गणा - चौदहवीं मार्गणा १२-६४ इक्षु-खंड सचित्त ( उच्छु खंड सचित्त) - मुनि के लिए. वध्र्य ४-५ For Private And Personal Use Only
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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