SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इच्छानुलोमा - अमत्यमृषा भाषा का भेद १२-१८ इत्वरिका (इत्तरिया ) - परिगृहीता गमन, अपरिगृहीतागमन, ब्रह्मचर्याणुव्रत के अतिचार २-१७ । इन्द्रसुत ( इन्दमुत ) - चतुर्मुख कल्की १-७५ इन्द्रिय ( इंदिय ) - जीव लक्षण, प्राण भेद ९-३ - पांच प्रकार, प्रमादभेद ११-१६ - दूसरी मार्गणा १२-४ इन्द्रियनिरोध ( इंदियरोह) - मुनि का पांच प्रकार का ५-२ इ प्रवियोग ( इट विओअ ) - आर्तध्यान का भेद १३-५ ईयांसमिति (इरिया समिय) - चलनक्रिया में सावधानता, जिसके होने पर प्राणीके मरनेपर भी हिंसा नहीं होती. २-६, ७, ५-११ ईहा ( ईहा ) - मतिज्ञानका भेद १२-३० उच्च - गोत्र कर्म का भेद १० -१४ उत्कृष्ट ( उक्कोसिया) अधिकतम कर्म-स्थिति १-१९ उत्तमक्षमा ( उत्तमखम) - प्रथम धर्माङ्ग ६-१ उत्तरा - नक्षत्र १-१६ उत्तरा फाल्गुणी - एक नक्षत्र जिस में २४ वे तीर्थकर वर्धमान का जन्म हुआ उत्तरा भाद्रपदा ( उत्तरभद्दपदा) - नक्षत्र १-१८ उत्तराषाढा ( उत्तरासादा) - नक्षत्र १-१७ उत्पादव्य-सापेक्षनय (उप्पादवय-विमिस्सा) - अशुद्ध द्रव्यार्थिक नयका भेद उत्सर्पिणी ( उत्सर्पिणी) - कल्प का वह अर्ध भाग जिस में जीवों के शरीर परिमाण, आयु, बल, ऋद्धि व तेज आदि की उत्तरोत्तर वृद्धि होती है उदधि सदशनाम ( उदहिसरिसणाम ) - सागरोपम १० - १९, २१ उदय ( उदय ) - कर्म की अवस्था विशेष ११-१, १५ For Private And Personal Use Only
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy