SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org नय-वाद १३३ जो द्रव्य के स्वभावको उसके अशुद्ध, शुद्ध व उपचार स्वरूपसे रहित केवल परम अर्थात् प्रमुख भावरूप मात्र ग्रहण करता है उसे सिद्धिकी अभिलाषा रखनेवालेको, परमभावग्राहक द्रव्यार्थिक नय समझना चाहिये ||२०|| Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर्यायार्थिक नय - ६ जो चन्द्र, सूर्य आदिकी पर्यायों को अक्रात्रेम अर्थात् अनादि व अनिधन अर्थात् अनन्त स्वीकार करता है उसे जिन भगवान् ने अनादिनित्य पर्यायार्थिक नय कहा है ||२१|| कर्मों के क्षय हो जाने पर विनाशका कारण न रहनेसे जीव अविनाशी हो है, इस प्रकार जो जीवकी मुक्त पर्यायको सादि व नित्य बतलाता है वह सादिनित्य पर्यायार्थिक नय है ||२२|| जाता सत्ताको अमुख्य करके जो द्रव्यकी उत्पाद और व्यय अवस्थाओं को ही ग्रहण करता है और इसलिये द्रव्यको अनित्य स्वभाव बतलाता है वह अनित्य शुद्ध पर्यायार्थिक नय है || २३॥ जो द्रव्यको एक ही काल में उत्पाद व्यय और प्रौव्य, इन तीनों गुणों से संयुक्त मानता है वह अनित्य अशुद्ध पर्यायार्थिक नय है ||२४|| जो समस्त संसारी जीवोंकी पर्यायोंको सिद्धों के समान शुद्ध कहता है, वह अनित्य- शुद्ध पर्यायार्थिक नय है ||२५|| चारों गतियों के जीवोंकी पर्यायोंको जो कर्मोंकी उपाधिके संयोग के कारण अनित्य और अशुद्ध बतलाता वह विभाव- अनित्य- अशुद्ध पर्यायार्थिक नय है ॥ २६ ॥ १. नैगम नय - ३ 1 जो द्रव्य या कार्य पूर्वका में समाप्त हो चुका हो उसका वर्तमान काल में होते जैसा ग्रहण करनेवाला भूत नैगम नय है । जैसे सहस्रों वर्ष पूर्व हुए भगवान् महावीरके निर्वाणको निर्वाण चतुर्दशी के दिन कहना 'आज वीर भगवान्का निर्वाण हुआ है' ||२७|| जिस कार्यको अभी प्रारंभ ही किया है उसको लोगों के पूछने पर पूरा हुआ कहना, जैसे भोजन बनाना प्रारंभ करने पर ही यह कहना कि ' आज भात बनाया है' यह वर्तमान नैगम नय कहलाता है ||२८|| For Private And Personal Use Only
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy