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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar तत्त्व-समुच्चय ___ द्रव्यार्थिक नयका विषय द्रव्य ही होता है, पर्यायार्थिक नयका विषय द्रव्य का पर्याय होता है तथा सद्भूत उपनयका विषय दो प्रकारके पदार्थ, असद्भूत उपनयका नौ प्रकारके तथा उपचरित उपनयका विषय तीन प्रकारके पदार्थ होते हैं ॥१०॥ लौकिक विषयों में जो पर्यायको गौण करके द्रव्यका मुख्यतासे ग्रहण किया जाता है उसे द्रव्यार्थिक नय कहा है, और इसके विपरीत अर्थात् द्रव्यको गौण करके जो पर्यायका मुख्यतासे ग्रहण किया जाता है उसे पर्यायार्थिक नय कहते हैं ॥११॥ द्रव्यार्थिक नय-१० कर्मों के बीच में फंसे हुए जीवको जो सिद्ध-मुक्त जीवके समान ग्रहण करता है वह कर्मोपाधिनिरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय है ॥१२॥ उत्पाद और व्ययको गौण करके जो केवल सत्ता मात्रको ग्रहण करता है वह सत्ता-ग्राहक शुद्ध द्रव्याथिक नय है ।।१३॥ गुण, गुणी, द्रव्य और पर्याय, इन चार प्रकारके पदार्थों में जो भेद नहीं करता वह भेद-विकल्पनिरपेक्ष शुद्ध द्रव्याथिकनय हे ॥ १४॥ जीवके जो ज्ञान-दर्शन आदि भाव हैं उनमें गगादिक विभावों को भी जो जीवके ही भाव कहता है वह कर्मोपाधि-सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय है ।।१५।। उत्पाद और व्यय सहित सत्ताको ग्रहण करके जो द्रव्यमें एक ही समय तीनों धर्म अर्थात् उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य स्वीकार करता है वह उत्पादव्ययसापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय है ॥१६॥ गुण और गुणी आदिमें परस्पर भेद रहते हुए भी जो द्रव्यमें उनके बीच सम्बन्ध स्थापित करता है वह भेदकल्पनासापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय है ॥१७॥ गुण व पर्यायरूप समस्त वस्तुस्वभावों में जो अन्वयरूपसे यह भी द्रव्य है, यह भी द्रव्यही है, इस प्रकार द्रव्यकी ही स्थापना करता है वह अन्वय द्रव्यार्थिक नय कहा गया है ।। १८ ।। जो स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल और स्वभाव, इस स्वचतुथ्यकी अपेक्षासे द्रव्यको सत्रूप ग्रहण करता है वह स्वद्रव्यादिग्राहक द्रव्यार्थिक नय है । तथा इसके विपरीत जो परद्रव्य, परक्षेत्र, परकाल और परभाव इस परचतुष्टय की अपेक्षासे द्रव्यको अमतरूप ग्रहण करता है वह परद्रव्यादिग्राहक द्रव्यार्थिक नय है ।।१९।। For Private And Personal Use Only
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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