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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org : १५ : नय-वाद इन्द्रिय विषयोंसे विरक्त समस्त कर्म-मलसे विमुक्त तथा विशुद्ध केवलज्ञानसे संयुक्त वीर जिनेन्द्रको प्रणाम करके पश्चात् नयों का लक्षण कहता हूँ ॥ १ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नय लक्षण वस्तुके किसी एक अंशका बोध करानेवाला जो श्रुतभेद ज्ञानियों द्वारा विकल्प रूपसे ग्रहण किया जाता है वह यहां नय कहा गया है । इन्हीं नयों रूप ज्ञान-प्रणालियों द्वारा मनुष्य ज्ञानी बनता है ॥ २ ॥ चूंकि नय- ज्ञान के बिना मनुष्यको स्याद्वाद के स्वरूपका बोध नहीं होता, इसलिये जो कोई एकान्त रूप मिथ्याज्ञानका विनाश करना चाहता है उसे नयका स्वरूप अवश्य जानना चाहिये || ३ || जिस प्रकार यदि धर्मविहीन जीव सुखकी अभिलाषा करे, या जलके न रहते हुए प्यास बुझाने की इच्छा करे, तो उसकी इच्छा कभी सफल नहीं हो सकती, उसी प्रकार यदि नयोंके ज्ञानसे रहित मूर्ख मनुष्य द्रव्योंका निश्चित ज्ञान प्राप्त करनेकी वांछा करे तो वह कदापि सफलीभूत न होगा || ४ || मूल नय केवल दो ही कहे गये हैं- - एक द्रव्यार्थिक नय और दूसरा पर्यायार्थिक नय । अन्य जो अनेक अगणित नय माने गये हैं वे सब इन्हीं मुख्य दो नयों के भेदोपभेद ही समझना चाहिये || ५॥ 2 उक्त द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक ये दो मुख्य नय, तथा नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत ये सात नय इस प्रकार नयोंके नौभेद हैं । एवं तीन उपनय होते हैं | ६ || द्रव्यार्थिक नयके दश भेद हैं, पर्यायार्थिकके छह, नैगमनयके तीन तथा संग्रहके दो व व्यवहार एवं ऋजुसूत्र के दो दो भेद । शेष सब नय एक एक ही हैं । ये नयोंके १०+६+३+२+२+२+३= २८ भेद कहे । अब उपनयोंके भेद कहते हैं ॥ ७-८ ॥ सद्भूत, असद्भूत और उपचरित, ये उपनयके तीन भेद हैं। इनमें से सद्भूत दो प्रकारका असद्द्भूत तीन प्रकारका और उपचारित भी तीन प्रकारका होता है इस प्रकार उपनयके भेदोपभेद २+३+३= ८ होते हैं ॥९॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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