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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२८ तत्त्व-समुच्चय प्रमाण, नय व दुर्नय युक्त वस्तु के स्वरूपको प्रकट करनेवाले सात ही भंग अर्थात् वचनोंकी शैलियां होती हैं। उनमें स्यात् शब्दके प्रयोगसे परस्पर सापेक्षता स्थापित हो जाती है और वे वचन प्रमाण रूप हो जाते हैं। उनके एक एक वचन भंग नयसे अर्थात् वस्तुके किसी एक अंश-विशेषको सापेक्षरूपसे प्रकट करनेके कारण वे सब वाक्य नयरूप हैं। किन्तु जब उनमें स्यात् शब्दका अभाव होनेसे सापेक्षकता नहीं रहती और वे एकान्तवाची हो जाते हैं, तब वे दुर्नयरूप हैं ॥८॥ वे सात प्रमाण-भंगियां निम्न प्रकारसे जानना चाहिये:१ स्याद् अस्ति। २ स्याद् नास्ति । ३ स्याद् अस्ति-नास्ति । ४ स्याद् अवक्तव्य । ५ स्याद् अस्ति अवक्तव्य । ६ स्याद् नास्ति-अवक्तव्य । ७ स्याद् अस्ति-नास्ति-अवक्तव्य ॥९॥ 'सत्' द्रव्यका लक्षण है। अतएव प्रत्येक द्रव्य अपनी आनी सत्ताकी अपेक्षासे 'अस्ति' स्वभाव है। किन्तु वही द्रव्य परद्रव्य आदिकी अपेक्षा 'नास्ति' स्वभाव है ॥१०॥ जब 'स्व' और 'पर' ये दोनों नयों की अपेक्षा कथन किया जाय तब द्रव्य 'अस्ति नास्ति' रूप कहा जाता है। किन्तु यदि माना जाय कि ये दोनों दृष्टियां वचनमें एक साथ ग्रहण नहीं की जा सकी, तो द्रव्य 'अवक्तव्य' कहा जाना चाहिये । और जब इस अवक्तव्यता पर उक्त तीनों नयों के साथ साथ दृष्टि रखना अपेक्षित हो तब 'अस्ति-अवक्तव्य', 'नास्ति-अवक्तव्य' और 'अस्ति-नास्ति-अवक्तव्य' ये तीन भंग उत्पन्न हो जाते हैं ॥११॥ ये ही अस्ति, नास्ति, अस्ति-नास्ति, अवक्तव्य तथा अस्ति-अवक्तव्य, नास्ति-अवक्तव्य और अस्ति-नास्ति-अव्यक्तव्य रूप वचन भंग जब ‘स्यात्' शब्दसे रहित होने के कारण नय सापेक्ष न होकर निरपेक्ष होते हैं तब वे दुर्नयभंग अर्थात् अशुद्ध व दूषित वचनभंग कहलाते हैं ॥१२॥ जब स्व, पर आदि अनेक विवक्षाओंमेंसे 'अस्ति' 'नास्ति' रूप कोई एक विवक्षा स्वीकार की जाती है, तो उसका प्रतिपक्षी स्वभाव भी तो अनुषंगिक For Private And Personal Use Only
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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