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षत्रिंशःस्तम्भः। .. भाषार्थः-नानास्वभावसंयुक्त द्रव्यको प्रमाणसें जानके, तिस द्रव्यको सापेक्ष खद्रव्यादिचतुष्टयापेक्षा अस्तिरूप, परद्रव्यादिचतुष्टयापेक्षा नास्तिरूप, इत्यादि सिद्धिकेवास्ते 'स्यात् ' शब्द और 'नय' इनसे मिश्रित करो.॥ ___ इसवास्ते नयके मतद्वारा स्वभावोंका अधिगम संक्षेपमात्रसें द्रव्योंमें दिखाते हैं.
द्रव्यका जो अस्तिस्वभाव है, सो, स्वद्रव्यादिचतुष्टयके ग्रहणसें, द्रव्यार्थिक नयके मतसें, जानना.। १ । __ परद्रव्यादिचतुष्टयके ग्रहणसे, द्रव्यार्थिक नयके मतसें, नास्तिस्वभाव है.। २। उक्तंच ॥
“॥ सर्वमस्तिस्वरूपेण पररूपेण नास्ति च ॥" उत्पादव्ययकी गौणताकरके सत्तामात्रके ग्रहणसें, द्रव्यार्थिकनयके मतसें, नित्यस्वभाव है.।३।।
उत्पादव्ययकी मुख्यतासें, और सत्ताकी गौणतासे, ऐसे पर्यायार्थिक नयके मतसें अनित्यस्वभाव है.।४।
भेदकल्पनाकी निरपेक्षतासे, शुद्धद्रव्यार्थिकनयके मतसें, एक स्वभाव
अन्वयद्रव्यार्थिकसे, अनेकस्वभाव है. कालान्वयमें सत्ताग्राहक, और देशान्वयमें अन्वयग्राहक नय, प्रवर्तता है.।६।
सद्भुतव्यवहारनयसें, गुणगुणी, पर्यायपर्यायीका भेदस्वभाव है.।७।
गुणगुण्यादिभेदनिरपेक्षतासें, शुद्धद्रव्यार्थिकनयके मतसें, अभेदस्वभाव है.। ८। . परमभावग्राहकनयके मतसें, भव्य, अभव्य, स्वभाव जानने, भव्यता, सो स्वभावनिरूपित है; और अभव्यता, सो उत्पन्नस्वभावकी तथा परभावकी साधारण है; इसवास्ते यहां अस्तिनास्तिस्वभावकीत, स्वपरद्रव्यादिग्राहकनयोंकी प्रवृत्ति, नही होसकती है.।९।१०।
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