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चतुस्त्रिंशःस्तम्भः। विशेष ५, कोलादिक ६, नरवाहीनिका ७, इत्यादि अनेक प्रकारके हैं. ॥ ४ ॥
६. शिल्पार्य-इनके भी अनेक प्रकार हैं। दरजीका काम करनेवाले१, तंतुवायाकुविंदा २, पट्टकारा पट्टकूलकुविंदा ३, दृतिकारा ४, विच्छिका ५, जविका ६, कठादिकारा ७, काष्टपादुकाकारा ८, छत्रकारा ९, बभारा १०, पप्भारा ११, पोत्थारा १२, लेप्पारा १३, चित्तारा १४, संखारा १५, दंतारा १६, भंडारा १७, जिप्भागारा १८, सेल्लारा १९, कोडिगारा २०, इत्यादि अनेक प्रकारके शिल्पार्य जानने ॥ ५॥
६. भाषार्य-जहां अर्द्धमागधी भाषाकरी बोलते हैं, और जहां ब्राह्मी लिपिके अठारह (१८) भेद प्रवर्ते हैं, अर्थात् लिखते हैं, सो भाषार्य.। ब्राह्मी लिपिके भेद ऊपर लिख आए हैं, और अठारह देशकी भाषा एकत्र मिली हुइ बोली जाती है, सो अर्द्धमागधी भाषा, ऐसे निशीथ चूर्णिणमें लिखा है. ॥६॥
७. ज्ञानार्य-इनके पांच भेद हैं. मतिज्ञानार्य १, श्रुतज्ञानार्य २, अवविज्ञानार्य ३, मनःपर्यवज्ञानार्य ४, केवलज्ञानार्य ५. इन पांचों ज्ञानोमेंसें जिसको ज्ञान होवे, सो ज्ञानार्य. इन पांचों ज्ञानोंका स्वरूप नंदिसूत्रसें जान लेना. ॥ ७॥
८. दर्शनार्य-इनके दो भेद हैं. सरागदर्शनार्य १, वीतरागदर्शनार्य २ सरागदर्शनार्य, कारणभेद होनेसें कार्यभेद नयके मतसें दश प्रकारके हैं। निसर्गरुचि १, उपदेशरुचि २, आज्ञारुचि ३, सूत्ररुचि ४, बीजरुचि ५, अभिगमरुचि ६, विस्ताररुचि ७, क्रियारुचि ८, संक्षेपरुचि ९, धर्मरुचि १०. । इनका स्वरूप ऐसें है. । भूतार्थत्वेन सद्भूता सच्चे हैं येह पदार्थ, ऐसें रूपसे जिसने जीव १, अजीव २, पुण्य ३, पाप ४, आश्रव ५, संवर ६, बंध ७, निर्जरा ८, मोक्षरूप ९, नव पदार्थ जाने हैं; कैसे जाने
* श्रीमेघविजयजी उपाध्यायविरचित "तत्वगीता" में जीवका प्रतिपक्षी अजीब, पुण्यका पाप, आश्रवका संवर, बंधका मोक्ष, और निर्जराकी प्रतिपक्षिणी वेदना, ऐसें दश पदार्थ लिखे हैं; और श्री भगवती मत्रमें भी नवपदार्थोंका वर्णन करके अनंतरही वेदनाका वर्णन किया है. ॥
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