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तत्त्वनिणयप्रासाद. हुएके भी अर्थों में, सायणाचार्य शंकराचार्यादिकोंने गडबड कर दीनी हैं. ___ अन्य एक यह भी प्रमाण है कि, जैनमतके आचार्य श्रीभद्रबाहुखामी, शब्दांभोनिधि महाभाष्यके कर्ता श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, इत्यादिकोंने तथा आवश्यकवृत्तिकार श्रीहरिभद्रसूरि, श्रीमलयगिरिजीने, जे जे श्रुतियां वेदोंकी लिखी हैं, तथा कल्पलता टीका, विधिकंदली, और उत्तराध्ययनसूत्रके पच्चीसमे अध्ययनमें, जे जे श्रुतियां आरण्यकादिकोंकी लिखी हैं; तिन पूर्वोक्त श्रुतियोंमेंसें कितनीक श्रुतियां, ऋग्वेद, यजुर्वेद, तैत्तिरीयारण्यक, बृहदारण्यक उपनिषदादिकोंमें मिलति हैं; और कितनीक श्रुतियां तिन पुस्तकोंमें नहीं मिलती हैं. इससे भी यही सिद्ध होता है कि, वे मंत्र श्रुतियां व्यवच्छद होगइ होवेगी, वा ब्राह्मणोंने जानबूझके निकाल दीनी होवेगी, वे सर्व श्रुतियां आगे लिख दिखाते हैं.॥ १॥विज्ञानघनएवैतेभ्यो भूतेभ्यः समुत्थायतान्येवानुविनश्य
ति न प्रेत्य संज्ञास्ति ॥ २॥सवै अयमात्मा ज्ञानमयः॥ ३॥ नहवै सशरीरस्य प्रियाप्रिययोरपहातरस्त्यशरीरं वा
वसंतं प्रियाप्रिये न स्पृशत इति ॥ ४॥ अग्निहोत्रं जुहुयात्स्वर्गकामः ॥ ५॥ अस्तमिते आदित्ये याज्ञवल्क्यः चंद्रमस्यस्तमिते शां
तेग्नौ शांतायां वाचि किं ज्योतिरेवायं पुरुषः आत्मा
ज्योतिः साम्राडितीहोवाच ॥ ६॥ पुरुष एवेदग्निं सर्व यद्भूतं यच्च भाव्यं उतामृतत्वस्ये
शानो यदन्नेनातिरोहति यदेजति यन्नेजति यद्दरे यदु अंतिके यदंतरस्य सर्वस्य यदु सर्वस्यास्य बाह्यत इत्यादि।
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