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एकोत्रिंशस्तम्भः ।
अह सोहणतिहिकरणे मुत्तनरकत्तजोगलग्गांम ॥ अणुकूलंमि ससिबले सस्से सस्से अ समयम्मि ॥ २२ ॥ नियविहवाणुरूवं संपाडिअभुवणनाहपूरण || परमभत्तीइ विहिणा पडिलाभिअसाहुवग्गेण ॥ २३ ॥ भत्तिभरनिष्भरेणं हरिसवसुलसि अबहलपुलएणं ॥ सद्धासंवेगविवेगपरमवेरग्गजुत्तेणं ॥ २४ ॥ विणिहयघणरागद्दोस मोहमिच्छत्तमललंकेणं ॥ अइउलसंत निम्मल अज्झवसाणेण अणुसमयं ॥ २५ ॥ तिहुअणगुरुजिण पडिमा विणिवेसिअनयणमाणसेण तहा ॥ जिणचंदवदणाओ धन्नोहं मन्त्रमाणेणं ॥ २६ ॥ नियसिरिरइयकरकमलमउलिणा जंतुविरहिओगासे ॥ निस्संकं सुत्तथं पए पर भावयतेण ॥ २७ ॥ जिणनाहदि गंभीरसमय कुसलेण सुहचरित्तेणं ॥ अपमायाईबहुविहगुणेण गुरुणा तहा सद्धिं ॥ २८ ॥ चउविहसंघजुरणं विसेसओ निययबंधुसहिणं ॥ इअविहिणा निउणेणं जिणवित्रं वंदणिजंति ॥ २९ ॥ तयणंतरं गुणहे साहू वंदिन परमभत्तीए ॥ साहम्मियाण कुजा जहारिहं तह पणामाई ॥ ३० ॥ जावय महग्घ मुक्कि चुक्खवथ्थप्पयाणपुवेणं ॥ पडिवत्तिविहाणेणं कायवो गरुअसम्माणो ॥ ३१ ॥ एआवसरे गुरुणा सुविइअगंभीर समयसारेण ॥ अक्खेवणिविक्वणि संवेइणिपमुहविहिणा उ ॥ ३२ ॥ भवनिवेअपहाणा सहासंवेगसाहणे णिउंणा ॥ गरुण बंधे घम्मका होड़ कायवा ॥ ३३ ॥
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