________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
तत्त्वनिर्णयप्रासादपोरसिचउवीसाए होइ अक्टेहिं दसहिं उववासो॥ विगईचाएहिं तिहिं एगट्टाणेहि अ चऊहिं ॥ १०॥
आयरणाओ नेअं पुरिमट्टा सोलसेहिं उववासो॥ एगासणगा चउरो अटु य बेकासणा तहय ॥ ११॥ भयवं बहू अ कालो एवं कारतस्स पाणिणो हुज्जा ॥ तो कहवि हुज्ज मरणं नवकारविवजिअस्सावि ॥ १२॥ नवकारवजिओ सो निव्वाणमणुत्तरं कह लभिज्जा ॥ तो पढमं चिअगिएहओ उवहाणं होओ वा मा वा ॥१३॥ गोअम जं समयं चिअ मुओवयारं करिज जो पाणी तं समयं चिअ जाणसु गहिअबयटुं जिणाणाए ॥१४॥ एवं कयउवहाणो भवंतरे सुलहबोहिओ होज्जा ॥ एअज्झवसाणोविहु गोअम आराहओ भणिओ ॥ १५॥ जो उ अकाऊणमिणं गोअम गिहिज भत्तिमंतोवि ॥ सो मणुओ दट्टव्वो अगिएहमाणोण सारिच्छो ॥१६॥ आसायइ तिथ्थयरं तयणं संघगुरुजणं चेव ॥ आसायणबहुलो सो गोयम संसारमणुगामी ॥ १७॥ पढमं चिअ कन्नाहेडएण जं पंचमंगलमहीअं॥ तस्सवि उवहाणपरस्स सुलहिआ बोहि निद्दिट्ठा ॥ १८॥ इअ उवहाणपहाणं निउणं सयलंपि वंदण विहाणं ॥ जिणपूआएवं चिअ पढिज सुअभणिअनीईए ॥ १९॥ तं सरवंजणमत्ता बिंदुपयच्छेअठाणपरिसुद्धं ॥ पढिऊणं चिइवंदणसुत्तं अथ्थं वियाणिजा ॥२०॥ तथ्थ य जथ्थेव सिआ संदेहो सुत्तअथ्थविसयंमि ॥ तं बहुसो वीमंसिअ सयलं निस्संकियं कुज्जा ॥२१॥
For Private And Personal