________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
एकोत्रिंशस्तम्भः। ॥ उर्जितसेलसिहरे दिक्खा नाणं च निसीहिआ जस्स । तं धम्मचकवहिं अरिट्रनमि नमसामि । ४। चत्तारि अष्ट दस दो अवंदिआ जिणवरा चउवीसं। परमनिहिअट्ठा सिद्धा सिद्धिं मम दिसतु ॥५॥” इत्युपधानवाचनास्थितिः॥ अथ विस्तार, निशीथसिद्धांतसें उधृत उपधानप्रकरणसें जानना.। सयथा ॥ पंचनमुक्कारे किल दुवालसतवो उ होइ उवहाणं ॥ अटु य आयामाइं एगं तह अट्टमं अंते ॥ १॥ एवंचिय नीसेसं इरियावहिआइ होइ उवहाणं ॥ सकच्छंयंमि अट्टममेगं बत्तीस आयामा ॥२॥ अरिहंतचेइअथए उवहाणमिणं तु होइ कायव्वं ॥ एगं चेव चउथ्थं तिन्नि अ आयंबिलाणि तहा ॥३॥ एगंचिय किर छटुं चउथ्थमेगं तु होइ कायवं॥ पणवीसं आयामा चउवीसथ्थयम्मि उवहाणं ॥४॥ एग चेव चउथ्थं पंच य आयंबिलाणि नाणथए । चिइवंदणाइसुत्ते उवहाणमिणं विणिदिटुं ॥५॥
अवावारो विकहा विवजिओ रुद्दझाणपरिमुक्को ॥ विस्सामं अकुणंतो उवहाणं कुणइ उवउत्तो ॥६॥ अह कहवि हुज बालो बुट्टो वा सत्तिवजिओ तरुणो ॥ सो उवहाणपमाणं पूरिजा आयसत्तीए ॥७॥ राईभोयणविरई दुविहं तिविहं चउव्विहं वावि ॥ नवकारसहिअमाई पच्चक्खाणं विहेऊणं ॥८॥ एगेए सुद्धआयंबिलेण इयरेहिं दोहिं उववासो॥ नवकारस्सहिएहिं पणयालसिाइं उववासो ॥९॥
For Private And Personal